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आशातना कही है । और उसी मुताबिक जिनप्रतिमा की चौरासी आशातना है।
४५. "उपवास (व्रत) में पानी बिना अन्य द्रव्य के खाने का निषेध है और प्रकरण में अणाहार वस्तु खानी कही है ।" उत्तर - जेठमल आहार अणाहार के स्वरूप का जानकार मालूम नहीं होता है । क्योंकि व्रत में तो आहार का त्याग है, अणाहार का नहीं तथा क्या क्या वस्तु अणाहार है, किस रीति से ओर किस कारण से वर्तनी चाहिये इस की भी जेठमल को खबर नहीं थी ऐसे मालम ढूंढिये व्रत में पानी बिना अन्य द्रव्य के खाने की मनाई समझते हैं तो कितनेक ढूंढिये साधु तपस्या नाम धराय के अधरिड का तथा गाहडी मठे सरीखी छास (लस्सी) आदि अशनाहार का भक्षण करते हैं सो किस शास्त्रानुसार ?
४६. "सिद्धांत में भगवंत को "सयंसंबुद्धाणं" कहा और कल्पसूत्र में पाठशाला में पढ़ने वास्ते भेजे ऐसे कहा है। उत्तर - भगवंत तो "सयसंबुद्धाण' अर्थात् स्वयंबुद्ध ही हैं । वे किसी के पास पढे नहीं है, परंतु प्रभु के मातापिता ने मोह से पाठशाला में भेजा तो वहां भी उलटे पाठशाला के उस्ताद के संशय मिटा के उसको पढा आए हैं ऐसे शास्त्रों में खुलासा कथन है ।। तथापि जेठमल ने ऐसे खोटे विरोध लिख के अपनी मूर्खता जाहिर की है।
४७. "सूत्र में हाड की असझाई कही है; और प्रकरण में हाड के स्थापनाचार्य स्थापने कहे" । उत्तर - असझाई पंचेंद्री के हाड की है अन्य की नहीं । जैसे शंख हाड है तो भी वाजिंत्रों में मुख्य गिना जाता है, और सूत्र में बहुत जगह यह बात है, तथा यदि ढूंढिये सर्व हड्डी की असझाई गिनते हैं तो उन की श्राविका हाथ में चूडा पहिन के ढूंढिये साधुओं के पास कथावार्ता सुनने को आती हैं सो वह चूडा भी हाथीदांत हाथी के हड्डी का ही होता है । इस वास्ते ढूंढक साधु को चाहिये कि अपने ढूंढक श्रावकों की औरतों को हाथ | में से चूडा उतारे बाद ही अपने पास आने देवें ! ४८. "श्रीपन्नवणाजी में आठ सौ योजन की पोल में वाणव्यंतर रहते हैं ऐसे कहा
और प्रकरण में अस्सी (८०) योजन की पोल अन्य कहीं"। यह हास्यरस संयुक्त लेख गुजरात, काठियावाड, मारवाडादि देशों के टूढियों आश्री है, क्योंकि उस देश में रंडी विधवा के सिवाय कोई भी औरत कभी भी हाथ चूड़े से खाली नहीं रखती है । कितना ही सोग हो परंतु सोहाग का चूडा तो जरूर ही हाथ में रहता है, औरतों के हाथसे चूडा तो पति के परलोक में सधाय बाद ही उतरता है तो दलिये साध को सोहागन औरतोंको अपने व्याख्यानादि में कभी भी नहीं आने देना चाहिये ! और पंजाब देश की औरतो के भी नाककान वगैरह के कितने ही गहने हड्डी के होते हैं, ददिये श्रावक श्राविकाओं के कोट कमाज फतइयां वगैरह को गुदामभी प्रायः हाड के ही ना होते हैं. इस वास्ते उन को भी पास नहीं बैठने देना चाहिये। बाहरे भाई दिया। सत्य है । विना गुरुगम के यथार्थ बोध कहां से हो ?
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