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नहीं मानते हो और मिथ्या प्ररूपणा करते हो उस का क्या कारण ? |
३४. "श्रीभगवतीसूत्र में आराधना के अधिकार में उत्कृष्ट पंद्रह भव कहे और | चंद्रविजयपयन्ने में तीन भव कहे " । उत्तर चंद्रविजयपयन्ने में जो आराधना लिखी है उस के तो तीन ही भव हैं और जो पंद्रह भव है सो अन्य आराधना के हैं।
३५. "सूत्र में जीव चक्रवर्त्तीत्व उत्कृष्ट दो वक्त पाता है, ऐसे कहा और श्रीमहापच्चक्खाणपयन्ने में अनंतवार चक्रवर्ती हो ऐसे कहा" । उत्तर श्रीमहापञ्चवखाणपयन्नेमें तो ऐसे कहा है कि जीवने इंद्रत्व पाया, चक्रवर्त्तीत्व पाया, और उत्तम भोग अनंतवार पाये । तो भी जीव तृप्त नहीं हुआ । परंतु उस | पाठ में चक्रवर्त्तीत्व अनंतवार पाया ऐसे नहीं कहा है । इस से मालूम होता है कि जेठमल को शास्त्रार्थ का बोध ही नहीं था ।
३६. "श्रीभगवतीसूत्र में कहा है कि केवली को हंसना, रग्ना, सोना, नाचना | इत्यादि मोहनी कर्म का उदय नहीं होता और प्रकरण कपिल केवलीने चोरों के आगे नाटक किया ऐसे कहा " उत्तर- कपिल केवलीने ध्रुपद र प्रमुख कह के चोर प्रतिबोधे और तालसुंयुक्त छंद कहे । उस का नाम नाटक है, परंतु कपिल केवली नाचे नहीं हैं ।
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३७. "श्रीदशवैकालिकसूत्र में साधु को वेश्या के पाडे (महल्ले ) जाना निषेध किया और प्रकरण में स्थूलभद्रने वेश्या के घर में चौमासा किया ऐसे कहा " । उत्तर- स्थूलभद्र के गुरु चौदहपूर्वी थे । इस वास्ते स्थूलभद्र आगमव्यवहारी गुरु की आज्ञा लेकर | वेश्या के घर में चौमासा रहे थे । और दशवैकालिकसूत्र तो सूत्रव्यवहारियों के | वास्ते है । इस वास्ते पूर्वोक्त बात में कोई भी विरोध नहीं हैं? । ३८. "श्रीआचारांगसूत्र में महावीरस्वामी संहरिजमाणे जाणइ ऐसे कहा और श्रीकल्पसूत्र में न जाणइ ऐसे कहा " । उत्तर जेठा मूढमति कल्पसूत्र का विरोध बताता है परंतु श्रीकल्पसूत्र तो श्रीदशाश्रुतस्कंध का आठवाँ अध्ययन है, इस वास्ते यदि दशाश्रुतस्कंध को ढूंढिये मानते हैं तो कल्पसूत्र भी उन को मानना चाहिये । तथापि कल्पसूत्र में कहे वचन की सत्यता वास्ते मालूम हो कि कल्पसूत्र में प्रभु न जाने ऐसे कहा है सो हरिणगमेषी देवता की चतुराई मालूम करने वास्ते, और प्रभु को किसी प्रकार की बाधा पीडा नहीं हुई इस वास्ते कहा है; जैसे किसी
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इस से यह भी मालूम होता है कि ढूंढिये स्थूलभद्र का अधिकार मानते नहीं होगे बेशक इन के माने बत्तीस शास्त्रों में श्रीस्थूलभद्र का वर्णन ही नहीं है तो फिर यह भी लोगोको स्थूलभद्र का वर्णन शील के ऊपर सुनार कर क्यों भारत में डालते हैं कर के अपना गला क्यों सुकाते हैं ?
तथा झूठा बकवाद
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में
श्री ठाणांगसूत्र के दशवे ठाणे में दशाश्रुतस्कंध के दश अध्ययन कहे है । पज्जोसवणाकप्पे अर्थात् कल्पसूत्र का नाम लिखा है तथापि ढूंढिये नहीं मानते है । जिस का कारण यही है कि कल्पसूत्र में पूजा वगैरह का वर्णन आता है ।।
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