Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 127
________________ १०४ सम्यक्त्वशल्योद्धार इस वास्ते जेठमल की की कुयुक्तियां खोटी हैं ओर जेठमल दाढा कों शाश्वत पुद्गल ठहराता है। परंतु सूत्रो में तो खुलासा जिनेश्वर की दाढा कही हैं । शाश्वती दाढा तो किसी जगह भी नहीं कही हैं । इस वास्ते जेठमल का लिखना मिथ्या है । __ जेठमल लिखता है कि "जो धर्म जान के लेते हो तो अन्य इंद्र ले और अच्युतेंद्र क्यों न ले ?" उत्तर - वीरभगवान् दीक्षा पर्याय में विचरते थे उस अवसर में उन को अनेक प्रकार के उपसर्ग हुए । तब भगवंत की भक्ति जान के धर्म निमित्त सौधर्मेंद्र ने वांरवार आ के उपसर्ग निवारण किये । वेसे अच्युतेंद्र ने क्यों नहीं किया ? क्या वह जिनेश्वर की भक्ति में धर्म नहीं समझते थे ? समझते तो थे तथापि पूर्वोक्त कार्य सौधर्मेंद्र ने ही किया है। वैसे ही भरतादि क्षेत्र के तीर्थंकरों की दाढा चार इंद्र लेते हैं । और महा विदेह के तीर्थंकरों की सर्व लेते हैं । इस वास्ते इसमें कुछ भी बाधक नहीं है। जेठमल लिखता है कि "दाढा सदाकाल नहीं रह सकती हैं । इस वास्ते शाश्वत पुद्गल समझने" इस तरह असत्य लेख लिखने में उस को कुछ भी विचार नहीं हुआ है सो उस की मूढता की निशानी है, क्योंकि दाढा सदाकाल रहती हैं ऐसे हम नहीं कहते हैं । परंतु वारंवार तीर्थंकरों के निर्वाण समय दाढा तथा अन्य अस्थि देवता लेते हैं । इस वास्ते उन को दाढा की पूजा में बिलकुल विरह नहीं पड़ता है। जेठमल कहता है कि "जमालि तथा मेघ कमार की माता ने उन के केश मोहनी कर्म के उदय से लिये हैं, वेसे दाढा लेने में मोहनी कर्म का उदय है" उत्तर - प्रभु की दाढा देवता लेते हैं सो धर्मबुद्धि से लेते हैं उस में उन को कोई मोहनी कर्म का उदय नहीं है । जमालि प्रमुख के केश लेने वाली तो उन की माता थी उस में उन को तो मोह भी हो सकता है परंतु इंद्रादि देवते दाढा आदि लेते हैं । वे कोई भगवंत के सक्के संबंधी नहीं थे। जो कि जमालि प्रमुख की माता की तरह मोहनी कर्म के उदय से दाढा ले, वे तो प्रभु के सेवक हैं और धर्मबुद्धि से ही प्रभु की दाढा प्रमुख लेते हैं ऐसे स्पष्ट मालूम होता है । जेठमल लिखता है कि "देवता जो दाढा प्रमुख धर्मबुद्धि से लेते हो तो श्रावक रक्षा भी क्यों नहीं ले ?" उत्तर - जिस वक्त तीर्थंकर का निर्वाण होता है उस वक्त निर्वाण महोत्सव करने वास्ते अगणित देवता आते हैं और अग्निदाह किये पीछे के दाढा प्रमुख समग्र ले जाते हैं । शेष कुछ भी नहीं रहता है तो इतने सारे देवताओं के बीच मनुष्य किस | गिनती में हैं जो उन के बीच जा के रक्षा प्रमुख कुछ भी ले सकें ? | जेठमल कहता है कि "कुलधर्म जान के दाढा पूजते हैं" सो भी असत्य है क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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