Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 138
________________ ११ २९ उत्कालिकसूत्र के नाम : १. दशवैकालिक, २. कप्पियाकप्पिय, ३. चुल्लकल्प ४. महाकल्प, ५. उववाइ, ६. रायपसेणी, ७. जीवाभिगम, ८. पन्नवणा, ९. महापन्नवणा, १०. पमायप्पमाय, ११. नंदि, १२. अनुयोगद्धार, १३. देवेंद्रस्तव, १४. तंदुलवेयालिय, १५. चंद्रविजय १६. सूर्य प्रज्ञप्ति, १७. पौरुषी मंडल, १८. मंडलप्रवेश, १९. विद्याचारण विनिश्चय, २०. गणिविद्या, २१. ध्यानविभक्ति, २२. मरणविभक्ति, २३. आयविसोही, २४. वीतरागश्रुत, २५. संलेखनाश्रुत, २६. विहारकल्प, २७. चरणविधि, २८. आउरपच्चक्खाण, २९. महापच्चक्वाण । __ एवमाइ शब्द से श्रीचउसरणसूत्र तथा श्रीभक्तपरिज्ञासूत्र प्रमुख चौदह हजार में से कितनेक उत्कालिकसूत्र समझने । ३१ कालिकसूत्र के नाम : १. उत्तराध्ययन, २.)दशाश्रुतस्कंध, ३. कल्पसूत्र, ४. व्यवहारसूत्र, ५. निशीथ, ६. महानिशीथ, ७. ऋषिभाषित, ८. जंबूद्वीपपन्नत्ति, ९. द्वीपसागरपन्नत्ति, १०. चंदपन्नत्ति, ११. खुड्डियाविमाणपविभत्ति, १२. महल्लियाविमाणपविभत्ति, १३. अंगचूलिया, १४. वग्गचूलिया, १५. विवाहचूलिया, १६. अरुणोववाइ, १७. वरुणोववाइ, १८. गरुडोववाइ, १९. धरणोववाइ, २०. वेसमणोववाइ, २१. वेलंघरोववाइ, २२. देविंदोववाइ, २३. उत्थानश्रुत, २४. समुत्थानश्रुत, २५. नागपरियावलिया, २६. निर्यावलिया, २७. कप्पिया, २८. कप्पवडंसिया, २९. पुफिया, ३०. पुप्फचुलिया, ३१. वन्हीदशा। __ एवमाइ शब्द से ज्योतिष्करंडसूत्र आदि चौदह हजार में से कितनेक कालिकसूत्र समझने । कल ७३ के नाम लिख के एवमाइ शब्द से आदि ले के १४००० प्रकीर्णन कहे हैं, उन में से जो व्यवच्छेद हो गये हैं सो तो भरतखंड में नहीं है । और शेष जो हैं सो सर्व आगम नाम से कहे जाते हैं । उनमें से कितनेक पाटण, खंबाउत (Cambay), जैसलमेर आदि नगरों के प्राचीन भंडारों में ताडपत्रों ऊपर लिखे हुए। विद्यमान हैं। जेठमल लिखता है कि "बत्तीस उपरांत सर्व सूत्र व्यवच्छेद हो गए और हाल में जो हैं सो नय बनाये हैं ।" उत्तर-जेठमल का यह लिखना जूठ है । यदि यह नये बनाये गये होंगे तो बत्तीस सत्र मा नये बनाये सिद्ध होंगे, क्योंकि बत्तीस सूत्र वे ही रहे और दूसरे नये बनाये गये । इस में कोई प्रमाण नहीं है, और जेठे ने इस बाबत कोई भी प्रमाण नहीं दिया है । इस वास्ते उस का लिखना मिथ्या है। बत्तीस उपरात । ४५) सूत्रांतर्गत : १३। मतों में से आठ सूत्रों के नाम पूर्वोक्त नंदिसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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