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(२) त्रिदंडी का भेष बनाया सो अयोग्य । (३) उत्सूत्र की प्ररूपणा की सो अयोग्य । (४) नियाणा किया सो अयोग्य । (५) कितने ही भवों में संन्यासी हो के मिथ्यात्व की प्ररूपणा की सो अयोग्य । (६) कितने ही भवों में ब्राह्मण हो के यज्ञ करे सो अयोग्य । (७) तीर्थंकर हो के ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न हुए सो अयोग्य ।
इत्यादि अनेक अयोग्य काम करे तो क्या पूर्वादि जन्म में इन कामों के करने से श्रीमन्महावीर अरिहंत भगवंत को तीर्थंकर न मानना चाहिये ? मानना ही चाहिये, क्योंकि कर्मवशवर्ती जीव अनेक प्रकार के नाटक नाचता है। परंतु उससे वर्तमान में उस की उत्तमता को कुछ भी बाधा नहीं आती है। वैसे ही द्रौपदी की की जिनप्रतिमा की पूजा श्रावक धम की रीति के अनुसार है, इस वास्ते सो भी मानना ही चाहिये, न माने सो सूत्रविराधक है।
जेठमल ने लिखा है कि "द्रौपदी की पूजा में भलामण भी सूर्याभकृत जिनप्रतिमा की पूजा की दी है। परंतु अन्य किसी की नहीं दी है ।" उत्तर-सूर्याभ की भलामण देने का कारण तो प्रत्यक्ष है कि जिन प्रतिमा की पूजा का विस्तार श्रीदेवर्धिगणि क्षमाश्रमणजी ने रायपसेणीसूत्र में सूर्याभ के अधिकार में ही लिखा है । सो एक जगह लिखा सब जगह जान लेना, क्योंकि जगह जगह विस्तारपूर्वक लिखने से शास्त्र भारी हो जाते हैं । और आनंद-कामदेवादि की भलामण नहीं दी, उस का कारण यह है कि उन के अधिकार में पूजा का पूरा विस्तार नहीं लिखा है तो फिर उन की भलामण कैसे देवें ? तथा यह भलामणा तीर्थंकर गणधरों ने नहीं दी है, किंतु शास्त्र लिखने वाले आचार्य ने दी है। तीर्थंकर महाराज ने तो सर्व ठिकाने विस्तारपूर्वक ही कहा होगा। परंतु सूत्र लिखने वालेने सूत्र भारी हो जाने के विचार से एक जगह विस्तार से लिख कर और जगह उस की भलामणा दी है।
तथा आनंद श्रावक को सूत्र में पूर्ण बालतपस्वी की भलामणा दी है, तो इस से क्या आनंद मिथ्या दृष्टि हो गया ? नहीं, ऐसे कोई भी नहीं कहेगा, ऐसे ही यहां भी समझना ।
जैसे ज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथ स्वामी के जन्ममहोत्सव की भलामण जंबूद्वीप पन्नत्ति सूत्र की दी है सो पाठ यह है - तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्थव्वाओ अठ्ठ दिसाकुमारिय महत्तरियाओ जहा जंबूद्वीवपण्णत्तिए सव्वं जम्मणं भाणियन्वं णवरं मिहिलियाए णयरीए कुंभरायस्स भवणंसि पभावइए देवीए अभिलावो जोएयव्वो जाव गंदीसरवर दीवे महिमा ।। इत्यादि अनेक शास्त्रों में अनेक शास्त्रों की भलाभाणा दी हैं। श्रीज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथस्वामी के दीक्षानिर्गमन की जमालि की भलामणा दी है तो क्या
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