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सम्यक्त्वशल्योद्धार
हुए हुए भी उन कुसुमों को कोई बाधा नहीं होती है। अधिक क्या कहना, सुधारस जिन के अंग ऊपर पडा हुआ है, उन की तरह अत्यंत अचिंतनीय निरुपम तीर्थंकर के प्रभाव से प्रकाशमान जो प्रसार उस के योग से उलटा उल्लास होता है अर्थात् वे उलटे प्रफुल्लित होते हैं ।
८. जेठमल लिखता है कि :कोणिक आदि राजा भगवंत को वंदना करने को गये । वहां मार्ग में छँटकाव कराये, फूल बिछवाये, नगर सिणगारे - सुशोभित किये इत्यादि आरंभ किये सो अपने छंदे अर्थात् अपनी मरजी से किये हैं परंतु उस में भगवंत की आज्ञा नहीं हैः उस का उत्तर- कोणिक प्रमुख ने जो भगवंत की भक्ति निमित्त पूर्वोक्त प्रकार नगर सिणगारे उस में बहुमान भगवंत का ही हुवा है, क्योंकि उन की कुल धूमधाम भगवंत को वंदना करने के वास्ते ही थी और इस रीति से प्रभु का समैया आगमन महोत्सव कर के उन्हों ने बहुत पुण्य उपार्जन किया है । उस वास्ते इस कार्य में भगवंत की आज्ञा ही है ऐसे सिद्ध होता है I ९. जेठमल ढूंढक कहता है कि "कोणिक ने नगर में छँटकाव कराया परंतु
समवसरण में क्यों नहीं कराया ?" उत्तर- कोणिकने जो किया है सो कुल मनुष्यकृत हैं और समवसरण में तो देवताओंने महा सुगंधी जल छिटका हुआ है । सुगंधी फूलोंकी वृष्टि की हुई है । तो उस देवकृत के आगे कोणिक का करना किस गिनती में ? इस वास्ते उस समवसरण में छँटकाव नहीं कराया है, तो क्या बाधा है ?
१०. जलय थलय शब्दके आगे (इव) शब्द का अनुसंधान करने वास्ते जेठमल ने दो युक्तियां लिखी हैं । परंतु वह व्यर्थ हैं, क्योंकि यदि इस तरह ( इव) शब्द जहां तहां जोड़ दें तो अर्थ का अनर्थ हो जावे, और सूत्रकार का कहा भावार्थ बदल जावे । इस वास्ते ऐसी नवीन मनःकल्पना करनी और शुद्ध अर्थ का खंडन करना सो मूर्खशिरोमणिका काम है ।
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११. जेठमल लिखता है कि हरिकेशी मुनि को दान दिया वहां पांच दिव्य प्रकटे । उन में देवताओं ने गंधोदक की वृष्टि की ऐसे कहा है तो गंधोदक वैक्रिय बिना कैसे बने ?" उत्तर - क्षीरसमुद्रादि समुद्रों में तथा हदों और कुंडों में बहुत जगह गंधोदक अर्थात् सुगंधी जल है । वहां से ला के देवताओं ने वरसाया है इस वास्ते वह जल वैक्रिय नहीं समझना । इस जगह प्रसंग से लिखना पड़ता है कि तुम ढूंढिये पानी AST और फूल को वैक्रिय अर्थात् अचित्त मानते हो तो सूर्याभ के आभियोगिक देवता ने पवन कर के एक योजन प्रमाण भूमि शुद्ध की सो पवन अचित्त होगी कि सचित्त ? जो सचित्त कहोगे तो उस के असंख्यात जीव हत हो गये और जो अचित्त कहोगे तो भी अचित्त पवन के स्पर्श से सचित्त पवन के असंख्यात जीव हत हो जाते हैं । तथा ऐसे उत्कट पवन से सूर्याभ के आभियोगिक देवताने कांटे, रोडे, घास फूस विना की साफ जमीन कर डाली । उसमें भी असंख्यात वनस्पति काय के तथा कीडे कीडियां आदि सकाय के जीव वैसे ही बहुत
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