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अर्थात् अन्य दूसरे बहुत देवता और देवियों के पूजा करने लायक है, इस से सिद्ध होता है कि सम्यग्दृष्टि की यह करणी है । यदि ऐसे न हो तो "सव्वेसिं वेमाणियाण" ऐसे पाठ होता, इस वास्ते विचार देखो ।
१७. जेठमल कहता है कि "अनंत विजय देवता हुए । उन में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों ही प्रकार के थे और उन सर्व ने सिद्धायतन में जिनपूजा की है, परंतु प्रतिमा पूजने से सर्व जीव सम्यग्दृष्टि हुए नहीं और सिद्धि भी नहीं पाये ।"
उत्तर अपना मत सत्य ठहराने वाले ने सूत्र में किसी भी मिथ्यादृष्टि देवता ने | सिद्धायतन में जिनप्रतिमा की पूजा की ऐसा अधिकार हो तो सो लिख के अपना पक्ष दृढ़ करना चाहिये । जेठमल ने ऐसा कोई भी सूत्रपाठ नहीं लिखा है । किंतु मनः | कल्पित बातें लिख के पोथी भरी है । इस वास्ते उसका लिखना बिलकुल असत्य है, | क्योंकि किसी भी सूत्र में इस मतलब का सूत्रपाठ नहीं है ।
और जेठमल ने लिखा है कि "प्रतिमा पूजने से कोई अभव्य सम्यग्दृष्टि न हुआ । इस | वास्ते जिनप्रतिमा पूजने से फायदा नहीं है" उत्तर - अभव्य के जीव शुद्ध श्रद्धायुक्त अंतःकरण विना अनंती वार गौतमस्वामी सदृश चारित्र पालते हैं और नव में ग्रैवेयक तक जाते हैं । परंतु सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं; ऐसे सूत्रकारों का कथन है, इस वास्ते जेठमल के लिखे मुताबिक तो चारित्र पालने से भी किसी ढूंढक को कुछ भी फायदा नहीं होगा ।
१८. पृष्ठ (१०२) में जेठमल ने सिद्धायतन में प्रतिमा की पूजा सर्व देवता करते हैं। ऐसे सिद्ध करने के वास्ते कितनीक कुयुक्तियां लिखी हैं । सो सर्व उस के प्रथम के लेख के साथ मिलती हैं तो भी भोले लोगों को फंसाने वास्ते वारंवार एक की एक ही बात लिख के निकम्मे पत्रे काले किये हैं ।
१९. जेठमल लिखता है कि "सर्व जीव अनंती वार विजय पोलीए पणे उपजे है उन्हों ने प्रतिमा की पूजा की तथापि अनंते भव क्यों करने पडे ? क्योंकि सम्यक्त्ववान् को अनंत भव होगा नहीं ऐसा सूत्र का प्रमाण है" उत्तर - सम्यक्त्ववान् को अनंत भव होगा नहीं ऐसे जेठमल मूढमति लिखता है । सो बिलकुल जैन शैली से विपरीत और असत्य है, और "ऐसा सूत्रका प्रमाण है" ऐसे जो लिखा है सो भी जैसे मच्छीमार के पास मछलियां फँसाने वास्ते जाल होता है वैसे भोले लोगों को कुमार्ग में डालने का यह जाल है । क्योंकि सूत्रों में तो चार ज्ञानी, चौदह पूर्वी, यथाख्यातचारित्री, एकादशमगुणठाणे वाले को भी अनंते भव हो । ऐसे लिखा है तो सम्यग्दृष्टिको हो इस में क्या आश्चर्य है ? तथा सम्यक्त्व प्राप्ति के पीछे उत्कृष्ट अर्धपुद्गल परावर्त्त संसार रहता है और सो अनंताकाल होने से उस में अनंत भव हो सकते हैं? ।
१ श्रीजीवाभिगम सूत्रमें लिखा है यतः -
सम्मदिठ्ठिस्स अंतरं सातियस्स अपजवसियस्स णत्थि अंतरं सातियस्स सपजवसियस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणतं कालं जाव अवढ्ढं पोग्गलपरियहं देसूणं ।।
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