Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 112
________________ ८९ कहा है । सत्यासत्य के निर्णय वास्ते वह सूत्रपाठ श्रीरायपसेणी सूत्र से अर्थ सहित लिखते हैं, - यतः श्रीराजप्रश्नीयसूत्रे - | तं महाफलं खलु तहारुवाणं अरहताणं भगवंताणं नामगोयस्सवि सवणयाए किमंग पुण अभिगमणवंदणनमंसणपडिपुच्छणपजुवासणयाए एगस्सवि आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्सगहणयाए तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि नमसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पजुवासामि एयं मे पेञ्चा हियाए सुहाए खमाए |निस्सेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ ।। अर्थ- निश्चय उस का महाफल है, किसका सो कहते हैं, तथारूप अरिहंत भगवंत के नामगोत्र के भी सुनने का परंतु उसका तो क्या ही कहना ? जो सन्मुख जाना, वंदना करनी, नमस्कार करना, प्रतिपृच्छा करनी, पर्युपासना सेवा करनी, एक भी आर्य (श्रेष्ठ) धार्मिक वचन का सुनना इस का तो महाफल होगा ही और विपुल अर्थ का ग्रहण करना उस के फल का तो क्या ही कहना ? इस वास्ते मैं जाऊं, श्रमण भगवंत महावीर को वंदना करूं, नमस्कार करूं, सत्कार करूं, सन्मान करूं, कल्याणकारी, मंगलकारी देवसंबंधि चैत्य (जिनप्रतिमा) उसकी तरह सेवा करूं, यह मुझको परभव में हितकारी, सुख के वास्ते, क्षेम के वास्ते, निःश्रेयस् जो मोक्ष उस के वास्ते, और अनुगमन करने वाला अर्थात् परंपरा से शुभानुबंधि-भव भव में साथ जाने वाला होगा। पूर्वोक्त पाठ में देव के चैत्य की तरह सेवा करूं ऐसे कहा । इस से 'स्थापनाजिन और भावजिन' इन दोनों की पूजा आदि का समान फल सूत्रकार ने बतलाया है। __ जेठमल कहता है कि "वंदना वगैरह का मोटा लाभ कहा परंतु नाटक का मोटा (बडा) लाभ सूर्याभने चितवन नहीं किया, इस वास्ते नाटक भगवंत की आज्ञा का कर्तव्य मालूम नहीं होता है ।" उत्तर-जेठमल का यह लिखना असत्य है, क्योंकि नाटक करना अरिहंत भगवंत की भावपूजा में है और उस का तो शास्त्रकारों ने अनंत फल कहा है, इस वास्ते सो जिनाज्ञा का ही कर्त्तव्य है, श्रीनंदिसूत्र में भी ऐसे ही कहा और सर्याभ ने भी बड़ा लाभ चिंतवन कर के ही प्रभ के पास नाटक किया है। ३. पेञ्चा शब्द का अर्थ परभव है ऐसा जेठमलने सिद्ध किया है सो ठीक है इस ___वास्ते इसमें कोई विवाद नहीं है। ४. सूर्याभने अपने सेवक देवता को कहा यह बात जेठमल ने, अधूरी लिखी है, इस वास्ते श्रीरायपसेणी सूत्रानुसार यहां विस्तार से लिखते हैं। सूर्याभ देवताने अपने सेवक देवता को बुला कर कहा कि हे देवानुप्रिय ! तुम आमलकल्पा नगरी में अंबसाल वन में जहां श्री महावीर भगवंत समवसरे हैं वहां जाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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