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सम्यक्त्वशल्योद्धार
सो तो एकावतारी है । तो सूत्र की यह बात कैसे मिलेगी ? इस वास्ते सूत्र वांचना और उसका अर्थ करना सो गुरुगम से ही करना चाहिये । परंतु तुम ढूंढकों को तो गुरुगम है ही नहीं। जिससे अनेक जगह उलटा अर्थ कर के महा पाप बांधते हो। और सूत्र में द्रौपदी ने पूजा की । वहां सूर्याभ की भलामणा दी है । इस से भी द्रौपदी अवश्यमेव सम्यक्त्ववंती सिद्ध है । तथा विवाह की महामोह का गिरदी धूमधाम में जिनप्रतिमा की पूजा याद आई, सो पक्की श्रद्धावंती श्राविका ही का लक्षण है, इस वास्ते द्रौपदी सुलभ बोधिनी ही थी ऐसे सिद्ध होता है।
जेठमल ने लिखा है कि "द्रौपदी के मातापिता भी सम्यग्दृष्टि नहीं थे क्योंकि उन्हों ने मांसमदिरा का आहार बनवाया था । उस का उत्तर-जेठमल का यह लिखना बिलकुल बेहूदा है, क्योंकि कृष्ण वासुदेव आदि बहुत राजा उसमें शामिल थे। पांडव भी उन के बीच में थे । इससे तो कृष्ण पांडवादि कोई भी सम्यग्द्रष्टि न हुए। वाह रे जेठमल ! तुमने इतना भी नहीं समझा कि नौकरचाकर जो काम करते हैं सो राजा ही का किया कहा जाता है। इस वास्ते द्रौपदी के पिता ने मांस नहीं दिया । यदि उस का पाठ मानोगे तो कृष्ण वासुदेव, पांडव वगैरह सर्व राजाओं ने मांस खाया तुम को मानना पडेगा ? तथा श्रीउग्रसेन राजा के घर में कृष्ण वासुदेव, आदि बहुत राजाओं के वास्ते मांसमदिरा का आहार बनवाया गया था । उसमें पांडव भी थे, तो क्या उस से उन का सम्यक्त्व नाश हो जावेगा ? नहीं, श्रेणिक राजा, कृष्ण वासुदेव आदि सम्यक्त्वद्रष्टि थे, परंतु उन को एक भी अणुव्रत नहीं था । तो उस से क्या उनको सम्यक्त्व विना कहना चाहिये ? नहीं, कदापि नहीं। इस वास्ते इस में समझने का इतना ही है कि उस समय विवाहादि महोत्सव गौरी आदि में उस वस्तु के बनाने का प्रायः कितनेक क्षत्रियों के कुल का रिवाज था। इस वास्ते यह कहना मिथ्या है, कि द्रौपदी के मातापिता सम्यग्दृष्टि नहीं थे। तथा इस ठिकाने जेठमलने लिखा है कि "प्रकार का आहार बनाया ।" परंतु ज्ञातासूत्र में ६ आहार का सूत्रपाठ है नहीं । उस सूत्रपाठ में चार आहार से अतिरिक्त जो कथन है सो चार आहार का विशेषण है। परंतु ६ आहार नहीं कहे हैं, इस से यही सिद्ध होता है कि जेठमल को सूत्र का उपयोग ही नहीं था । और उस ने जो जो बाते लिखी है सो सर्व स्वमति कल्पित लिखी है।
जेठमल लिखता है कि "द्रौपदी ने प्रतिमा पूजी सो तीर्थंकर की प्रतिमा नहीं थी। क्योंकि उस ने तो प्रतिमा को वस्त्र पहिनाए थे और तुम हाल की जिनप्रतिमा को वस्त्र नहीं पहिनाते हो" उसका उत्तर-जिस समय द्रौपदी ने जिनप्रतिमा की पूजा की उस समय में जिनप्रतिमा को वस्त्र युगल पहिनाने का रिवाज था । सो हम मंजूर करते हैं । परंतु वस्त्र पहिनाने का रिवाज अन्यदर्शनियों में दिनप्रतिदिन अधिक होने से जिनप्रतिमा |भी वस्त्रयुक्त होगी तो पिछान में न आवेगी ऐसे समझ के सूत आदि के वस्त्रा पहिनाने
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