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(५०) आंबिल की ओली कराते हो लिखा है, सो सत्य है, महा उत्तम है, श्रीपालचरित्रादि शास्त्रों में कहा है, और इस से नव पद का आराधन होता है, यावत् मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है।
(५१) यति मरे बाद लडू लाहते हो लिखा है, सो असत्य है, हमने तो ऐसा सुना भी नहीं है, कदापि तुम्हारे ढूंढक करते हों, और इस से याद आ गया हो ऐसै भासता है ?
_(५२) यति के मरे बाद थूभ कराते हो - यह श्रावक की करणी हैं, गुरु भक्ति निमित्त करना यह श्रावक का धर्म है। श्रीआवश्यक, आचारदिनकरादि सूत्रोमें लिखा है और इसमें साधुका उपदेश है, आदेश नहीं।
ऊपर मुताबिक ५२. प्रश्न जेठमल ने लिखे हैं, सो महा मिथ्यात्व के उदयसे लिखे है, परंतु हमने इनके यथार्थ उत्तर शास्त्रानुसार दिये हैं, सो सुज्ञ पुरुषों ने ध्यान देकर पढ लेने। अब अज्ञानी ढूंढिये शास्त्रों के आधार बिना कितने कितनेक मिथ्या आचार सेवते हैं उनका वर्णन प्रश्नों की रीति से करते हैं:
१. सारा दिन मुंह बांधे फिरते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? २. बैल की पूंछ जैसा लंबा रजोहरण लटका कर चलते हो, सो किस
शास्त्रानुसार ? ३. भीलों के समान गिलती बांधते हो, सो किस शा० ? ४. चेला चेली मोल का लेते हो, सो किस शा० ? ५. जूठे बरतनों का धोवण संमूच्छिम मनुष्योत्पत्ति युक्त लेते हो और पीते हो,
सो किस शास्त्रानुसार ? ६. पूज्य पदवी की चादर ओढते हो, सो किस शा० ? । ७. पेशाब से गुदा धोते हो, सो किस शा० ? ८. लोच कर के पेशाब से शिर धोते हो, सो किस शा० ? ९. पेशाब से मुहपत्ती धोते हो, सो किस शा० ? १०. भंगी चमार वगैरह को दीक्षा देते हो, सो किस शा० ?
दृष्टांत-हांसी गाम में लालचन्द रिख हुआ था, जो जाति का चमार था, जिसने अंबाले शहर में काल किया था, जिस की समाधि बनी हुई अब
उस जगह विद्यमान है। ११. छींबा, भरवाड (गडरिया), कहार (झींबर), कलाल, कुंभार, नाई वगैरह १ सुनने में आया है कि अमृतसर में एक ढूंढनी के मरे बाद सेवकोंने पिंड भराये थे तथा पंजाब में
जब किसी ढूंढीये या ढूंढनी के मरने पर लोक एकत्र होते हैं तो खूब मिठाईयों पर हाथ फेरते हैं।
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