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सम्यक्त्वशल्योद्धार
मुखवस्त्रिका मुख आगे दे कर बोले इत्यादि ।
तथा जेठे ने पूर्वोक्त अपने लेखको सिद्ध करने के वास्ते श्रीभगवतीसूत्र का पाठ तथा टीका लिखी है, सो निःकेवल झूठ है। क्योंकि श्रीभगवतीसूत्र के पाठ तथा टीका में वायुकाय का नाम भी नहीं है, तो फिर जेठमल मृषावादी ने वायुकाय का नाम कहां से निकाला ? तथा यह अधिकार तो शकेंद्र का है । और तुम ढूंढिये तो देवता को अधर्मी मानते हो, तो फिर उसकी निरवद्यभाषा धर्मरूप क्यों कर मानी ? जब देवता को तुमने धर्म करने वाला समझा, तो श्रीजिन प्रतिमा पूजने से देवता को मोक्षफल जो श्रीरायपसेणीसूत्र में कहा है, सो क्यों नहीं मानते ?
तथा ढूंढकों की तरह मुहपत्ती सारा दिन मुंह को बांध छोडनी किसी भी जैनशास्त्र में लिखी नहीं है । प्रथम तो सारा दिन मुहपाटी बांधनी कुलिंग है। देखने में दैत्य का रूप दीखता है, गौयां, भैसां, बालक, स्त्रियां प्रायः देख के डरते हैं, कुत्ते भौंकते है, लोग मश्करी करते हैं, ऐसा बेढंगा भेष देख के कई हिंदु, मुसलमान, फिरंगी, बडे बडे बुद्धिमान हैरान होते, और सोचते हैं कि यह क्या स्वांग है ? तात्पर्य जितनी जैनधर्म की निंदा जगत् में लोग प्रायः आजकल करते हैं, सो ढूंढकों ने मुखपाटी बांध के ही कराई है, तथा ढूंढकों ने मुंह के तो पाटी बांधी, परंतु नाक, कान, गुदा, इनके ऊपर पाटी क्यों नहीं बांधी ? इन द्वारा भी तो वायुकाय के जीव भाव से मरते होंगे ? तथा शास्त्र में लिखा है कि जो स्त्री हिंसा करती हो, उस के हाथ से साधु भिक्षा लेवे नहीं । तब तो ढूंढकों की जिन श्राविका ने मुख, नाक, कान गुदा के पाटी बांधी हो, उन के ही हाथ से ढूंढियों को भिक्षा लेनी चाहिये, क्योंकि ना बांधने से ढूंढिये हिंसा मानते है और मुख से निकले थूक के स्पर्श से दो घडी बाद सन्मूर्च्छिम जीव की उत्पत्तिशास्त्र में कही है । तब तो महा अज्ञानी ढूंढक मुंहपत्ती बांध के असंख्यात सन्मूर्छिम जीवों की हिंसा करते है; सो प्रत्यक्ष है।
तथा श्रीआचारांगसूत्र के दूसरे श्रुतस्कंधके दूसरे अध्ययनके तीसरे उद्देशमें कहा है यतः
से भिक्खु वा भिक्खुणी वा ऊसासमाणे वा निसासमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उजए वा वायणिसग्गे वा करेमाणे वा पुव्वामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहित्ता ततो संजयामेव औसासेजा जाव वायणिसग्गे वा करेजा ॥
भानार्थ - उच्छ्वास निश्वास लेते, खांसी लेते, छींक लेते, उवासी लेते, डकार लेते, हुए साधुने हस्त से मुंह ढांकना । अब विचारो कि मुंह बांधा हुआ हो तो ढांकना क्या ? तथा जेठे ने लिखा है, कि "नाक ढांकना किसी भी जगह कहा नहीं है" तो मुख बांधना भी कहां कहा है, सो बताओ।
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