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सम्यक्त्वशल्योद्धार
१२४. कई जगह कल्पसूत्र पढते हो और मानते नहीं हो सो किस शास्त्रानुसार ? १२५. कई जगह पर्युषणा में गोशाले का अध्ययन पढते हो सो किस शास्त्रानुसार ? १२६. कोई रिख मर जावे तो पुस्तक वगैरह गृहस्थ की तरह हिस्से कर के बांट
लेते हो सो किस शास्त्रानुसार ? दृष्टान्त-लींबडी में देवजी रिख के बहुत
झगडे के बाद बारह हिस्से में बांटा गया है। १२७. धोलेरा तथा लींबडी वगैरह में पैसा वगैरह डालने के भंडारे बनाये हैं सो
किस शास्त्रानुसार ?' १२८. धोलेरा में वाड़ी बनाई है सो ?
ऊपर के प्रश्न ढूंढकों के आचार वगैरह के संबंध में लिखे हैं इन पर विचार करने से प्रगटपणे मालूम होगा कि इन का आचार व्यवहार जैन शास्त्रोंसें विरुद्ध है। सुज्ञजनों ! संवेगी जैन मुनि देश विदेश में विचरते हैं, उन के उपकरण और क्रिया वगैरह प्रायः एक सदृश ही होती है; और ढूंढकों के मारवाड़, मेवाड़, पंजाब, मालवा, गुजरात, तथा काठियावाड़ वगैरह देशों में रहने वाले रिखों (ढूंढक साधुओं) के उपकरण, पोसह, प्रतिक्रमण वगैरह का विधि
और क्रिया वगैरह प्रायः पृथक् पृथक् ही होते हैं, इससे सिद्ध होता है कि इन की क्रिया वगैरह स्वकपोलकल्पित है, परन्तु शास्त्रानुसार नहीं है। ढूंढक लोक मिथ्यात्व के उदय से बत्तीस ही सूत्र मान के शेष सूत्र पंचांगी तथा धर्मधुरंधर पूर्वधारी पूर्वोचार्यों के बनाये ग्रन्थ प्रकरण वगैरह मानते नहीं हैं तो हम उन (ढूंढकों) को पूछते हैं कि नीचे लिखे अधिकारों को तुम मानते हो, और तुम्हारे माने बत्तीस सूत्रों के मूल पाठ में तो किसी भी ठिकाने नहीं है तो तुम किस के आधार से यह
अधिकार मानते हो ? बत्तीस सूत्रों के बाहिर के जो जो बोल ढूंढिये मानते हैं वे बोल यह हैं :
१. जंबू स्वामी की आठ स्त्री। २. पांचसौ सत्ताईस की दीक्षा । ३. महावीर स्वामी के सत्ताईस भव । ४. चंदनबाला ने उड़द के बाकुले वहोराए ।
पंजाब देश शहर हुशियारपुरमें संवत् १९४८ के माहि महिने में पुस्तकों के भंडारे के नाम से रुपैये एकत्र किये थे जिस में कितनेक बाहिर नगर के लोग पीछे से भेजने को कह गये थे, कितनेकने उसी वक्त दे दिये थे, अब सुनते हैं कि दे जाने वाले पश्चात्ताप करते हैं, और भेजने वाले मौनकर बेठे हैं और लेने वाले नाई और भाई दोनों को हजम कर गये हैं।
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