________________
सिद्ध कर दिया है । अब विचार करना चाहिये कि जिस को पद पदमें झूठ बोलने का, उलटे रास्ते चलने का, झूठे अर्थकरने का और झूठे अर्थ लिखने का, भय नहीं उस के चलाए पंथ को दया धर्म कहना और उस धर्म को सञ्चा मानना यह बिना भारी कर्मी जीवों के अन्य किसी का काम है ?।
जो ढूंढक पंथ की उत्पत्ति जेठमल्ल ने लिखी है सो सर्व झूठी मिथ्या बुद्धि के प्रभाव से लिखी है । और भोले भव्य जीवों को फंसाने वास्ते बिना प्रयोजन, उस में सूत्र की गाथा लिख मारी है। परंतु इस ढूंढक पंथ की खरी उत्पत्ति श्रीहीरकलश मुनि विरचित कुमति विध्वंसन चौपाई तथा अमरसिंह ढूंढक के पडदादे अमोलक चंद के हाथ की लिखी हुई ढूंढक पट्टावली के अनुसार नीचे मूताबिक है। ढूंढकमत की पट्टावली : __गुजरात देश के अहमदावाद नगर में एक लुंका नामक लिखारी ज्ञानजी यति के उपाश्रय में पुस्तक लिख के आजीविका करता था। एक दिन उस के मन में बेईमानी आने से एक पुस्तक के सात पत्रे बीचमें से लिखने छोड दिये । जब पुस्तक के मालिक ने पुस्तक अधूरा देखा, तब लुंके लिखारी की बहुत भंडी कर के उपाश्रय में से निकाल दिया । और सब को कह दिया कि इस बेईमान से कोई भी पुस्तक न लिखवावें । इस तरह लंका आजीविका भंग होने से बहुत दुःखी हो गया और इस से वह जैनमत का द्वैषी बन गया । जब अहमदावाद में लुंके का जोर न चला तब वह वहां से चल के लींबडी गांव में गया। वहाँ लंके का संबंधी लखमशी वाणीया राज्य का कारभारी था। उस को जा के कहा, भगवंत का धर्म लुप्त हो गया है । मैंने अहमदावाद में सच्चा उपदेश किया। परंतु मेरा कहना न मान के उलटा मुझ को मारपीट के वहां से निकाल दिया। तब मैं तेरे तरफ से सहायता मिलेगी ऐसा धार के यहां आया हूं। इस वास्ते यदि तू मुझ को सहायता करे तो मैं सच्चे दया धर्म की प्ररूपणा करूं । इस तरह हलाहल विषप्रायः असत्य भाषण कर के बिचारे कलेजा विना के मूढमति लखमशी को समझा
आ तब उसने उसकी बात सञ्ची मान के लंके को कहा कि त लींबडी के राज्य में बेधडक प्ररूपणा कर । मैं तेरे खानपान की खबर रखूगा, इस तरह सहायता मिलने से लुंके ने संवत १५०८ में जैन मार्ग की निन्दा करनी शुरू की । परंतु अनुमान छब्बीस वर्ष तक तो उसका उन्मार्ग किसी ने अंगीकार नहीं किया। संवत १५३४ में एक अकल का अंधा भूणा नामक वाणीया लुंके को मिला। उसने महा मिथ्यात्व के उदय से लुंके का मृषा उपदेश माना । और लुंके के कहने से विना गुरु के वेष पहन के मूढ अज्ञानी जीवों को जैन मार्ग से भ्रष्ट करना शरू किया। __ लुंके ने इकतीस सूत्र सच्चे माने और व्यवहारसूत्र सच्चा नहीं माना और जहां जहां मूल सूत्र का पाठ जिन प्रतिमा के अधिकार का था, वहां वहां मनःकल्पित अर्थ लगा के लोगों को समझाने लगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org