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नीति विचार पर चलाने वाले अपनी बी को शुद्ध भावना से प्रसन्न करने वाले अपने इप्टदेव के नेत्री में दर्शन करने वाले अपने इष्टदेव को रोम २ मे वसाने वाले अपने सतगुरुदेव को सच्चे दिल से तन, मन, धन, प्राण अर्पण करने वाले चलते फिरते सोते जागते खाते पीते बोलते आदि सब काम करते हुये भी अपने सतगुरुदेव इष्टदेव मे पूर्ण स्थिति रखने वाले दुराचार को मिटाकर सदाचार में दृढ रहने वाले क्योकि यह शरीर बार बार नहीं प्राम होता है पर विचार करो कि इस संसार को वेद शास्त्री ने अनादिकाल से बतलाया है और इसके भोग भी अनादिकाल से चले आरहे हैं और तभी से आपने पति पत्नी बन कर चौरासीलाख योनियों में भोग ही तो भोगे पर विचार करो कि आप पति पत्नी को कभी सन्तोप भी हुवा, आपको इन चौरासी लाख योनियों में सुख शान्ति नहीं मिली तो क्या इस मनुष्ययोनी में मिल सकती है नहीं मिल सकती। प्रेमी पाठको यह मनुष्य योनी केवल भोगो के लिये नहीं मिली यह तो भोगोंको खत्म करने के लिये मिली है। आप विचार करके देखो कि आपके यह भोग विपय खुजली के समान हैं जैसे २ खुजली को खुजावोगे वैसे ही खुजली आपको प्रिय मालूम होगी, परन्तु खुजाते रहने से उसमें कौह (जखम) होजाते हैं फिर बड़ा कप्ट होता है यही आपके विषय भोगने का हाल है। जैसे २ विपय भोगों को भोगते हो दिन रात वैसे ही खुजली की तरह दिन व दिन विपयभोग धढते ही जाते हैं