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मोहित कुमार मिश्र
SAMBODHI
फा- गुले खन्दान कि न खन्दद चे कुनद ?
अलम् अज. मुश्क न बन्दद चे कुनद ? (रूमी) (खिला हुआ फूल अगर न खिलखिलाए, तो और क्या करे ? चतुर्दिक् को अपने सुगन्ध की पताका से न बांधे, तो और क्या करे ?)
यहाँ 'बन्द' मसदर की स्वरूपगत समानता सं० । बन्ध्' से है । फा० भाषा में ध् ध्वनि नहीं होने से संस्कृत की इस महाप्राण ध्वनि को अल्पप्राण ध्वनि द् हो गयी है। फा० अवेस्ता में भी महाप्राण ध्वनियों के स्थान पर अल्पप्राण ध्वनियाँ प्राप्त होती हैं, जैसे- सिन्ध को हिन्द । अतः संस्कृत की 'बन्ध्' धातु ही फारसी में 'बन्द' के रूप प्रयुक्त होने लगी होगी । अर्थ के दृष्टि से भी दोनों में 'बन्द करना, बाँधना' का प्रयोग होता है। अतएव अर्थगत समानता भी दोनों में विद्यमान है । निष्कर्ष एवं उपसंहार
इस प्रकार प्रस्तुत शोधपत्र में संस्कृत तथा फारसी भाषा की परस्पर साम्य रखने वाली धातुओं (क्रियापदों) के भाषिक अध्ययन से स्पष्ट है कि यद्यपि वर्तमान में दोनों भाषाओं के बोलने वालों अथवा प्रयोग करने वालों का भौगोलिक क्षेत्र पृथक्-पृथक् है, लेकिन दोनों ही भाषाएँ एक समुद्र से निर्गत दो धाराओं के समान भारोपीय परिवार की भारत-ईरानी शाखा की प्रमुख सहभाषाएँ हैं। फारसी तथा अवेस्ता से संस्कृत का बहुत अधिक साम्य रहा है और दोनों की भाषिक संस्कृति एक ही रही है । दोनों की भाषिक संरचना में अत्यधिक समानता है। काल की दृष्टि से भी संस्कृत तथा फारसी में लकार विभाजन लगभग एक ही प्रकार का है, परन्तु वर्तमान फारसी का लकार विभाजन अरबी व्याकरण से प्रेरित है। क्रियापदों (धातुरूपों) की निर्मिति जिस प्रकार संस्कृत में तिङन्त आदि के संयोग से होती है उसी तरह फारसी में भी मुज़ारे अथवा मुज़ारिय से शिनासे सर्फी के रूप में प्रत्यय लगने से । लकारों के अनुसार दोनों भाषाओं की कुछ धातुओं के क्रियापदों में भेद आ जाता है; जैसे- संधा० 'दृश्' का रूप लट्लुट्लकार में क्रमशः ‘पश्यति'-'द्रक्ष्यति', फा०म० 'बीन्' का रूप 'बीनद'-'ख्वाहद दीद' ।
संस्कृत तथा फारसी के समान धातुओं के ध्वनि, वर्ण, शब्द और अर्थगत विवेचन से देखने पर अधिकांश धातुओं में परस्पर स्वरूपगत और अर्थगत समानताएँ मिलती हैं । कुछ धातुओं में वर्णपरिवर्तन, वर्णागम, वर्णविपर्यय एवं सम्प्रसारण होने से स्वरूपगत अंशतः भेद है, लेकिन दोनों भाषाओं में वे एक ही अर्थ में प्रयुक्त होती हैं । जैसा कि उल्लेख भी किया गया है कि संस्कृत और प्राचीन ग्रन्थ अवेस्ता की भाषा में अत्यन्त साम्य रहा, लेकिन कालान्तर में अवेस्ता का प्राकृतीकरण होकर आधुनिक फारसी भाषा का उदय हुआ प्रतीत होता है। दोनों भाषाओं के शब्दों के मूल-क्रियापदों के अध्ययन से दोनों भाषाओं के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं भाषिक पक्षों की एकता के अवबोधन में सहायता मिलती है। इससे स्पष्ट होता है कि दोनों भाषाओं का मूल एक है तथा कालातिपात तथा भौगोलिक प्रभावों के कारण दोनों भाषाओं के शब्द रूपों में परिवर्तन आ चुका है जिन्हें भाषा वैज्ञानिक प्रविधियों से जाम जा सकता है।