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Vol. XLI, 2018
कांगड़ा शैली में नायिका-भेद अंकन
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है ।१६ नायिका के भय, लज्जा तथा संकोच जैसे भावों को भी इन चित्रकारों ने बड़ी ही कुशलता के साथ अपने चित्रों में उतारा है।
कांगड़ा शैली के एक चित्र में (चित्र संख्या १) अभिसारिका नायिका को अपने प्रिय से मिलने जाते दिखाया गया है। अभिसारिका नायिका वह है जो नायक से मिलने के लिए संकेत-स्थल पर जाती है। काली अंधेरी रात में अपने को छिपाने के लिए नीले या श्याम वर्ण के वस्त्र धारण करने वाली नायिका कृष्णाभिसारिका कहलाती है। इसे अपने प्रियतम से मिलने की इतनी लालसा है कि मेघों का गर्जन, बिजली की चमक, पैरों से लिपटते सर्प तथा भयावह रात्रि में मिलने वाले भूत-पिशाचों का भी भय नहीं रहता । इस चित्र में अंकित नायिका को चित्रकार ने इन्हीं सब लक्षणों से परिपूर्ण दर्शाया है जिसे रात्रि के अंधियारे के मध्य एक प्रेत से वार्तालाप करते हुए भी भय नहीं लग रहा। नीले रंग का लहंगा-चुनरी धारण किये यह नायिका रात्रि के मध्य एक घनघोर जंगल से गुजरती जा रही है। उसे इस बात का भी भान नहीं है कि उसके पैरों में सर्प लिपटे हैं तथा मार्ग में आने वाली बाधाओं की भी उसे कोई परवाह नहीं है। नायिका का रूप-लावण्य अंधकार में भी अपना प्रकाश फैला रहा है तथा उसके मुखमण्डल के भाव उसकी भावनाओं को पूर्ण रूप से उजागर करने में सक्षम है ।
___ एक अन्य चित्र में (चित्र संख्या २) स्वाधीनपतिका नायिका को नायक से अपने पैरों पर महावर लगवाते चित्रित किया गया है । स्वाधीनपतिका नायिका वह कहलाती है जो सर्वथा सुखी व सन्तुष्ट है। नायक उसके पूर्णतः अधीन है अतः उसे लोक-लाज की कोई चिन्ता नहीं होती । इस चित्र में नायिका को भवन के बाहरी बरामदे में एक चौकी पर बैठे दिखाया गया है। नीचे जमीन पर नायक बैठा है जिसने नायिका का एक पैर हाथ से पकड़कर अपने घुटने पर रक्खा है व दूसरे हाथ से वह उस पर महावर लगा रहा है । नायिका के पैर के नीचे उसने अपना पटका लगा रक्खा है जिससे उसके नायिका के प्रति अनुराग की पुष्टि होती है। नायिका का मुख गर्वमयी दीप्ति से व्याप्त है । नायक के समीप ही नायिका की सखी खड़ी है जो नायिका से वार्तालाप कर रही है। सभी मानवाकृतियाँ कांगड़ा शैली की विशेषताओं को दर्शाती है । चित्र की पृष्ठभूमि में भवन की वास्तु का अंकन आकर्षक है । भवन के बाहरी भाग में कुछ पेड़ भी चित्रित हैं। इस संयोजन में नायक-नायिका के कोमल मनोभावों को कलाकार ने अत्यन्त लालित्यपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया है ।
प्रोषित्पतिका नायिका का भी कांगड़ा शैली में अत्यन्त सुन्दर चित्रण देखने को मिलता है (चित्र संख्या ३) । प्रोषित पतिका वह नायिका है जिसका पति अनेक कार्यों में फंसकर परदेश चला गया है तथा नायिका उसकी अनुपस्थिति में विरह से पीड़ित है । नायिका को भवन के बाहर बरामदे में एक पलंग पर बैठे चित्रित किया गया है। उसके समीप ही खड़ी उसकी सखी उसे समझाने का प्रयत्न कर रही है । नायिका के मुखमण्डल पर कुछ गम्भीरता के भाव हैं । चित्र में भवन की वास्तु का भी सुन्दर अंकन हुआ है तथा भवन के पीछे दूर पहाड़ी पर घुमड़ते हुए बादलों का भी अंकन है। भवन के पीछे बने वृक्ष-पुष्पाच्छादित लताओं से तो ढंके हैं परन्तु वृक्ष पर बैठे पक्षी जोड़े में न चित्रित होकर अकेले ही अंकित किये गये हैं जो कि नायिका के मनोभावों को व्यक्त करने में सक्षम हैं । वस्त्राभूषणों, भवन