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मुसव्विरी के मुकाम और राजस्थान
ज्योति कुमावत
यथा सुमेरुः प्रवरो नगानां, यथाण्डजानां गरूणः प्रधानः । यथा नराणां प्रवरः क्षितीशः स्तथाकलानामित चित्रकल्पः ॥३९॥
विष्णुधर्मोत्तर पुराण (तृतीय खण्ड) "जैसे पर्वतों में सुमेरू पर्वत श्रेष्ठ है, पक्षियों में गरुण प्रधान है और मनुष्यों में राजा उत्तम है उसी प्रकार कलाओं में चित्रकला में सर्वश्रेष्ठ है ।"१
कलाओं से सम्बद्ध इस वाक्य से प्रश्न उठता है कि चित्रकला ही इतनी अधिक प्रशंसनीय क्यों है ? उत्तर के लिए संक्षेप में अन्य ललित कलाओं के साथ चित्रकला को जोड़कर देखना होगा। हमारी ज्ञानेन्द्रियों में आँख सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील है। हम अपने ज्ञान का ८० प्रतिशत आँखों के माध्यम से प्राप्त करते है। कमल शब्द कहने पर आँख का जो अनुभव हैं वही कमल के रूप को कल्पना में स्थापित करके उसके प्रभाव को व्यंजित करता है । सौन्दर्य शब्द का अर्थ विस्तार कितना ही हो गया हो मूलतः उसकी अनुभूति का माध्यम आँख ही है । कई विद्वान संगीत और काव्यकला को ललित कलाओं में श्रेष्ठ मानते है परन्तु उनकी सौन्दर्यानुभूति ध्वनि और शब्दों पर निर्भर करती है जो चाक्षुष रसानुभूति क्षमता से कई पीछे है। इन कलाओं का रसास्वादन करने के लिए बुद्धि से होते हुए मन तक का मार्ग तय करना होता है जबकि चित्रों को देखते ही उसके रंगों, आकारों, संतुलन-समन्वय से मन सीधे ही प्रभावित होता है जो एक सार्वभौमिक प्रभाव है। मूर्तिकला चित्रकला का ही एक अगला स्तर है परन्तु यह कई मायनों में चित्रकला से पिछड़ा हुआ है। चित्र फलक पर द्विआयामी चित्रण के साथ-साथ कलाकार तीसरे आयाम का भी आभास सम्भव बना देता है जिससे मूर्तिकला की आवश्यकता पर संदेह होने लगता है। मूर्तिकला के लिए अभिव्यक्ति माध्यम ठोस पदार्थ होता है जबकि वही प्रभाव चित्रण में रंगों द्वारा भी उकेरा जा सकता है । ललित कलाओं का एक पक्ष स्थापत्यकला भी है जो उपयोगिता की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है या यूं कहें कि स्थापत्य में उपयोगिता का प्रश्न पहले उठता है। किसी भी कलाकार के लिए स्थापत्य कला द्वारा अपने भावों की अभिव्यंजना इतनी आसान नहीं होती जितनी कि एक चित्र के द्वारा । अतः चित्रकला अन्य सभी कलाओं में अपना सर्वोच्च स्थान बनाये