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146 ज्योति कुमावत
SAMBODHI रखती है। मनुष्य ने अपने मन में उठने वाले विचारों को कला के माध्यम से जो साकार या मूर्त रूप प्रदान किया, वह देश-काल की सभी सीमाओं को लांघकर सबके लिए समान रूप से बुद्धि-ग्राह्य हो गया। अस्तु विचारों के आदान-प्रदान के लिए जहाँ मनुष्य की भाषा का प्रभाव क्षेत्र सीमित है, वहाँ मनुष्य की कला का क्षेत्र विस्तृत है और सार्वभौम है । चित्रण हमारे जीवन में आदिकाल से लयबद्ध रूप से निरन्तर जुड़ा रहा है। सम्पूर्ण मानवीय जीवन चित्रकला में अनुरंजित है । कलाकार अपने जीवन के अनुभव, कल्पना, प्रतिक्रिया और आन्तरिक उद्वेलन को चित्रण के माध्यम से दशक के सामने प्रस्तुत करता है। भारतीय चित्रकला का उद्भव एवं समकालीन स्वरूप भी प्रायः यही कथानक का बखान करना है। संस्कृति की संवाहिका, सौन्दर्यानुभूति, धार्मिक एवं आध्यात्मिक, सार्वभौमिक एवं प्रतीकात्मकता का गुण लिए हुए भारतीय चित्रकला वैश्विक कला उपादानों में महत्वपूर्ण है।
भीमबेठका, पंचमढ़ी, सिंहनपुर, होशंगाबाद आदि शैलाश्रयों में प्राप्त प्राक्कालीन कला चित्रण की अस्तित्व गाथा का रूपांकन हमारे समक्ष करती है। इन शैलाश्रयों से निकलकर कला शनैः शनैः सामाजिकता रूपी प्रयोगशाला में प्रवेश कर गई। जहाँ अनेक समुदायों ने इसे अपनी-अपनी रूचि अनुसार परिवर्तित परिवधित किया। आदिवासियों की अनगढ़ कूची से बौद्ध भिक्षुओं की तूलिका से होते हुए कला कुमावत, जांगिड़, सोनी समुदाय विशेष के ब्रश के वश में आ गई । भारतीय कला का यह इतिहास कई उतारचढ़ाव का साक्षी है। चित्रकला की चर्चा करते वक्त उसके चित्रकार का जिक्र सबसे पहले जहन में आता है। भारत में भी कई ऐसे चित्रकार हुए जिन्होंने यहां की कला को धूमिल से प्रकाश पुंज में बदल दिया। यहां की अपनी शास्त्रीय कला शैली है परन्तु समय के साथ यहा की कला पर भी बदलाव के लक्षण स्पष्टतः दिखाई देते है। भारत में वैदेशिक सत्ताओं का हस्तक्षेप बहुत ही लम्बे समयान्तराल तक रहा जिसने यहाँ की कलानुरंजना का रूख ही बदल दिया। गुप्तकाल के स्वर्णिम काल के पश्चात् मध्यकाल एक ऐसा महत्वपूर्ण अवसर देश के इतिहास में आता है जिसमें राजनैतिक, सांस्कृतिक संवेदनशीलता ने एक नवीन युग का सूत्रपात किया। मध्यकाल की पूर्वपीठिका से उसके अन्त तक साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक सभी पक्षों में विरोध और सामन्जस्य का मिला-जुला रूप दिखाई देता
है।
___ कलात्मक पक्ष पर ध्यानकेन्द्रित करने पर हम पायेगें कि अब भारतीय कला शुद्ध रूप से भारतीय न रही । यहाँ हस्तक्षेप आरम्भ हो चुका था। हिन्दू कलाकारों के साथ-साथ यहाँ मुस्लिम कलाकारों ने भी प्रचूर कलाभिव्यक्ति की। मुस्लिम कलाकारों का भारत में प्रवास किया गया जिसके पश्चात् वे भारत में ही रहकर सृजनकारी कार्य करने लगे । चित्रकार के लिए अरबी भाषा में 'मुसव्विर' शब्द का उपयोग किया जाता है जो "मुसव्विरी" के फन में माहिर होता है । जो एक अरबी स्त्रीलिंग शब्द है जिसका अर्थ चित्रकला या तस्वीर बनाने की कला होता है। गौरतलब है कि मुसव्विरी के लिए इस्लाम में यह मान्यता है कि इसके पवित्र धर्म ग्रन्थ, कुरआन में जीवित वस्तुओं का चित्रण करना मना है । इस निषेध के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि किसी भी जीवित वस्तु का प्रतिरूपण भगवान् से स्पर्धा करना है। क्योंकि सिर्फ वही है जो प्राणवान चीजें बना कता है । एक जनश्रुति यह भी है कि जिस घर में कुत्ता