Book Title: Sambodhi 2009 Vol 32
Author(s): J B Shah, K M patel
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 88
________________ विजयपाल शास्त्री SAMBODHI -इति नानार्थार्णवसंक्षेपभूमिकायां निवेदनाख्यायां प्रथमपृष्ठे त. गणपतिशास्त्री सामवेदविदां मान्य: केशवस्वामिनामकः । श्रीराजराजदेवस्य सेवकोऽभूद् द्विजाग्रणीः ॥ नानार्थार्णवसंक्षेप:- १.१.१४; १५. द्रष्टव्य-अलङ्कारसंग्रह की भूमिका-पृ० ४३, अडियार लायब्रेरी, १९४९ ई. । उदञ्चत्कल्लोलप्रकरपदविश्रान्ततरसामकिञ्चित्पीयूषद्रवकलितमाधुर्यसुहृदाम् । प्रपञ्चं पञ्चाशल्लिपिभिरभिषिञ्चन्त इव ते विरिञ्चिप्राणा मे विदधतु गिरां गुम्फनविधिम् ।।२।। अष्टाभ्यश्शेवधिभ्यस्स्रवदमलमहारत्नसम्पूर्णकुम्भैरष्टाभिस्स्त्रीभिराविर्मनसिजमशनैरादरेणाभिषिक्तम् । इष्टाभिर्गोभिरारादगणितकबलं वीक्षितं स्वर्णवर्णं दिष्टं मे स्यादनिष्टप्रकरविहतये कृष्णनामाभिधेयम् ॥३॥ ' -अर्जुनरावणीय-टीकारम्भे द्वितीयतृतीयश्लोको १७. सम्पूर्ण टीकाग्रन्थ में ऐसे केवल तीन स्थल ही दृष्टिगत हुए हैं, जहाँ टीकाकार ने पाठान्तर-निर्देश किया है। इनमें एक स्थल प्रथम खण्ड की शिवदेशिकशिष्य टीका में है तथा शेष दो तृतीय खण्ड की वासुदेवीय-टीका में । इन तीनों स्थलों का विवरण इस प्रकार है(१) 'श्रीमान् समृद्धिमान् अमितद्युतिः अमिता प्रचुरा द्युतिर्दीप्तिर्यस्य, असितद्युतिरिति वा' -अर्जनरावणीयम् (कैरलीटीकोपेतसंस्करणम्)-७.९; पृ० ११०; (२) 'भीमाननशब्देन सिंहो लक्ष्यते । भीमायुधमिति वा पाठः'। -अर्जुनरावणीयम् (कैरलीटीकोपेतसंस्करणम्)-१९.१६, पृ० ३०१; (३) 'द्रुतमस्त्रराशि दिक्षु चिक्षेप । अस्त्रराशिमिति वा'। -अर्जनरावणीयम् (कैरलीटीकोपेतसंस्करणम्)-१९.३७, पृ० ३०१; अत्र सम्पादककृता टिप्पणी- इदं पाठान्तर-सूचनम्, अत्र ‘अद्रिराशिमिति वा' इति स्यात् अथवा 'अश्मराशिमिति वा' इति स्यात् । 'द्रुतमद्रिराशिम्' इत्युदीच्यपाठः । 000

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