Book Title: Sambodhi 2009 Vol 32
Author(s): J B Shah, K M patel
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 118
________________ 112 तनूजा सिंह SAMBODHI तालाबों के अतिरिक्त राजवंश का वर्णन, भरतपुर राजाओं तथा राजा सूरजमल की भरपूर प्रशंसा तथा एक अन्य पुस्तक 'सुजान विलास' भी लिखी है जो कि कि साहित्य क्षेत्र में शोध की अपेक्षायें रखती है ।२९ शिवराम कविराज शिवराम राजा सूरजमल के पास उनके युवाकाल से ही रहते थे। 'नवधा भक्ति रागरस सार' में 'श्री मन्महाराजकुमार श्री सूरजमल' शिवराम की कविता उच्च कोटि की भाषा स्वच्छ अलंकारों का शब्दों का चयन पूर्ण अधिकार युक्त है। जिसके लिए ३६००० रूपयों से पुरुस्कृत किया । शिवराम के ग्रन्थों में भरतपुर राज्य के आश्रयदाता के वंश सम्बन्धी ज्ञान होता है जो कि एक स्वतंत्र शोध का विषय है। कवि शिवराम सूरजमल के पास रहते थे, लगभग उसी समय उनके भाई प्रतापसिंह जी के पास दो अत्यन्त उच्चकोटि के कवि और आचार्य रहते थे इनके नाम सोमनाथ और कलानिधि जिनके द्वारा लिखित सामग्री सराहनीय है। रूपराम कटारा - राजा सूरजमल के पुरोहित रूपराम कटारा थे । भक्तवर राजा नागरीदास कृत 'सुजनानन्द' नामक एक छोटी काव्य कृति (रचनां सं. १८१०) में बतलाया है। जब रूपराम राजा सूरजमल के साथ दिल्ली अभियान में विजयी होकर लौटे थे, तब उसके उपलक्ष में उन्होंने बरसाना में रासलीला का आयोजन किया था तथा बरसाना की विशाल हवेलियाँ, वहाँ का बाजार, लाडिलीजी के पुराने मन्दिर की सीढ़ियाँ, कुण्ड आदि का निर्माण करवाया तथा मोहनराम लवानिया का नाम भी बरसाना के निर्माण कार्यो के लिए प्रसिद्ध रहा । वह भरतपुर राज्य के उच्च पदाधिकारी रहे ।३२ उदैराम - वीर-साहित्य को लेकर राजा सूरजमल की वीरगाथाओं का चित्रण 'सुजान चरित्र' के अतिरिक्त एक अन्य ग्रन्थ 'सुजानसंवत' में पाया जाता है जो चित्रण युक्त एक अच्छा ग्रन्थ है ।३३ ___उदैराम द्वारा लिखित 'गिरवर विलास' एक ऐसा सुन्दर ग्रन्थ है जिस में रास के रहस्य को बताने के साथ-साथ प्रकृति का सजीव चित्र उपस्थित किया गया है। ऐसा मालूम होने लगता है जैसे कवि ने पर्वत, सरोवर, वृक्ष, रज आदि सभी में जीवन डाल दिया हो । इसमें वर्णित रास प्रसंग द्वारा व्रज की लीलाओं का एक समा सा बंध जाता है जो कि साहित्य शोध का विषय है। श्री वृन्दावनदास (चाचाजी) आपने १८०० से सं. १८११ तक वृन्दावन में रहकर ही पद-रचना की । संवत् १८१३ में ब्रज पर यवनों का आक्रमण होते ही चाचाजी३४ यहा से भरतपुर चले गये उस समय भरतपुर की गद्दी पर राजा सूरजमल थे । १८१७ में डीग (भरतपुर) में रहकर 'हरिकला वेलि' पुस्तक पूर्ण की। छौनाजी महाराज ब्रज और राजस्थान की सीमा के निवासी थे । भरतपुर तथा वैर में इनके चमत्कार की कई किंवदन्तियाँ प्रसिद्ध रही ।

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