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तनूजा सिंह
SAMBODHI
रात्रि को वह किसी एक व्यक्ति के साथ थी और अन्य दिस उसने दूसरे का आलिंगन किया । यदि मुझको यह विश्वास हो जाता कि मै उम्रभर इस परगनों का स्वामी रहूँगा, तब मैं इस मस्जिद को तोड़ डालता। आखिर इससे क्या लाभ होता? आज मैं इस मस्जिद को तोड़ डालता और दूसरी बार मुसलमान आकर उन देवालयों को मिट्टी में मिला देते तथा एक के स्थान पर अन्य चार मस्जिद खड़ी कर देते । श्रीमन्त! आप स्वयं इन जिलों में पधारें है । और आपके हाथ में गतिविधियों का संचालन है। आप इस कार्य को पूरा कर सकते हैं ।"१२
संवेदनशीलता में एक अन्य उदाहरण स्वरूप सं. १८१८ में हिन्दू शक्तियों में आपसी फूट के कारण पानीपत के युद्ध में मरहठाओं को सैन्य संख्या की कमी और प्रबन्धन में शिथिलता के कारण पराजय हुयी जिसके विषय में भरतपुर के 'मथुरेश' कवि ने उस स्थिति पर खेद प्रकट कर कहा है -"नाँच उठी भारत की भावी सदाशिव शीश, ओंधी हुई बुद्धि, उस जनरल महान् की । होती न हीन दशा हिन्दी-हिन्दहिन्दुओं की, मानता जो भाऊ, कही सम्मति सुजान की" | पानीपत के युद्ध में पराजितहोकर जो मरहठा सैनिक थके-मांदे और घायल अवस्था में जाटों के इलाके में होकर वापिस लौटे थे, उनके खान-पान, उनकी सेवा-सुश्रुषा और दवा-दारु की यथोचित व्यवस्था राजा सूरजमल की ओर से की गयी थी ।१३ शिक्षा एवं धार्मिक प्रभाव___महाराजा बदनसिहं के राजकवि आचार्य सोमनाथ 'छिरौरा' ग्राम मथुरा से पाँच मील दूर के चतुर्वेदी थे । आचार्य सोमनाथ की प्रकाण्ड प्रतिभा देखकर महाराजा बदनसिंहने अपने पुत्र सूरजमल का शिक्षक नियुक्त किया। सूरजमल के लिए ही आचार्य सोमनाथ ने 'सुजान विलास' १८०७ में तथा 'सिंहासन बत्तीसी' का अनुवाद किया जो कि सरस भावयुक्त था तथा बृजेन्द्र विनोद या दशमस्कंधभाष्य भी राजा सूरजमल के लिये लिखा ।१४
___इसके अतिरिक्त 'नवधा भक्ति' महादेव को ब्याहुलों, शिवस्तुति, ब्रजलीला आदि ग्रन्थों का अनुवाद हुआ ।१५ राजपुत्रों को पढ़ाने के लिए पंडित रखे जाते थे जो हितोपदेश और आइने अकबरी आदि से राजनीति और सामान्य नीति सिखाते थे । वैद्यक और ज्योतिष का भी कार्य चलता था । डीग एवं कामा का भाग ब्रज के सन्निकट है, इसलिए यहाँ पर साहित्य प्रवृत्ति का अनुगमन यहाँ के कवियों द्वारा बराबर होता रहा। ब्रज मण्डल के कारण यहाँ कृष्ण भक्ति का प्रचार रहा । वैसे राम और लक्ष्मण की भक्ति भी रही ६, ‘पद मंगलाचरन बसंत होरी' नाम की श्रृंगार रस से पूर्ण एक पुस्तक के अनुसार भरतपुर राज्य के इष्टदेव भी श्री लक्ष्मण जी रहें । भरतपुर में लक्ष्मण जी के दो मन्दिर है । एक पुराना श्री वेंकटेश लक्ष्मणजी का और दूसरा नया बाजार वाले लक्ष्मण जी का । इसके अतिरिक्त भरतपुर राज्य की पताका पर लिखा रहता है "श्री लक्ष्मण जी सहाय ।"१८ रामकृष्ण महन्तराजा सूरजमल के गुरु थे।९ अतः मथुरा, गोकुलाधीश के प्रति भी उनकी अटूट श्रद्धा का प्रभाव पड़ा । गोवर्धन भी भरतपुर राजा के इष्ट रहे है
और सात कोस की परिक्रमा लगाने का उत्साह राजपरिवार में रहा है । भरतपुर में गिरि गोवर्धन के प्रति बहुत श्रद्धा के कारण अनेक अवसरों पर जीर्णोद्धार आदि का कार्य कराया गया । मन्दिरों में नियमित रूप से रास लीलायें इत्यादि कई कार्यक्रम होते थे ।२० प्रत्येक युद्ध से पूर्व व बाद में प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या