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तनूजा सिंह
SAMBODHI
चारु विवेक" "चौदह विद्या विधान, धर्म-कर्म प्रवीण" माना हैं ।
ब्रज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक स्थिति पर सूरजमल पर अधिक प्रभाव रहा था । ब्रज के लम्बे इतिहास में कृष्णकालीन यादवों के पश्चात जो थोड़े से हिन्दू राज्यवंश यहाँ शासनारूढ़ रहे थे। उनमें डीग, भरतपुर के जाट राजा अन्यतम् थे जिन्होंने प्रायः एक शताब्दी तक ब्रज के बड़े भाग पर शासन किया था।
सूरजमल जी लम्बे चौड़े और शरीर से सुगठित थे। भौहे काली, पलकें भारी, नासिका छिद्र फैले हुए तथा गलमुच्छ थी। श्यामरंग के होने पर भी बड़े तेजस्वी थे । माथे पर कृष्णानन्दी तिलक अतिसुशोभित था । सिर पर पगड़ी बाँधना, सिरपेच या सोने की कलगी, मोती जवाहरातों की लटकती लड़ी। गले में कीमती कंठा और हीरा जवाहरात की लड़ियाँ रहती थी। कमर में कमरपट्टा बंधा जिसमें कटार व तलवार लटकती थी। पैरों में जूतियाँ पहनते थे । ।
संसार में सफलता प्रदान करने वाले व्यावहारिक ज्ञान की आप में बहुतायत रही । एक सुप्रख्यात इतिहासवेत्ता ने लिखा है "राजा सूरजमलजी की राजनैतिक क्षमता अदभुत थी- उनकी बृद्धि तीव्र और बड़ी साफ थी। एक फारसी इतिहासवेत्ता का कथन – 'यद्यपि राजा सूरजमल किसानों की सी पोशाक पहनते थे और अपनी मातृभाषा काठेड़ी' या ब्रजभाषा बोलते थे पर वे जाट जाति के अफलातून प्लेटो तथा सरताज थे।" उनमें उत्साह था, जीवन शक्ति थी। काम के पीछे लगने का दृढ़ निश्चय था और मन एक लोहे की दीवार की तरह मजबूत था, जो हार खाना जानता ही न था ।
कूटनीति में वे मुगलों और मराठों से आगे थे। अपने पिता बदनसिंह के जीवकाल में ही आपने सर्वप्रथम साहसपूर्ण कार्यों में भरतपुर किले पर ई. स. १७३२ में अधिकार किया था । उस समय यह किला मिट्टी से बना छोटा सा था। उन्होंने इसे एक विशाल और सुदृढ़ किले में परिणित किया व किले के आसपास शहर बसाया । शासन न्यायपूर्ण था, अतएव लोगों का उनकी और स्वाभाविक आकर्षण था। राज्य सीमायें - .
ब्रज के इतिहास में राजा सूरजमल का समय महत्वपूर्ण रहा । मुख्यतः औरंगजेब के अत्याचारों एवं बर्बरता के कारण राजा सूरजमल ने एक प्रबल राजनैतिक सैनिक सत्ता संभाली जिसके प्रभाव के लिए विविध स्थानों थून, सिनसिनी, डींग, भरतपुर, मुरसान, हाथरस आदि कई छोटे बड़ें राज्यों से सत्ता का संचालन हुआ । कुल मिलाकर यमुना से एक ओर गंगा तक चंबल तक का सारा प्रदेश उनके राज्य में सम्मिलित रहा। इष्ट मित्रता -
राजा बदनसिंह की इष्ट मित्रता सवाई राजा जयसिंह के साथ रही और राजा सूरजमल ने उसी घनिष्टता तथा सम्बन्धों को कायम रखा । जबकि सवाई राजा जयसिंह का देहावसान हो गया था, तो उनके ज्येष्ठ पुत्र राजा ईश्वरीसिंह राज्यासीन हुए । तथा छोटे भाई माधवसिंह ने दावा व क्लेश किया कि वह राज्य के असली हकदार हैं । माधवसिंह का पक्ष और भी कई राजाओं ने लिया । राजा सूरजमल ईश्वरीसिंह को