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पथ प्रदर्शक - महाराजा सूरजमल
तनूजा सिंह
राजा सूरजमल महाराजा बदनसिंह के चार पूत्रों में ज्येष्ठ पुत्र उपनाम सुजानसिंह सबसे अधिक योग्य, राजनीतिज्ञ, धार्मिक विचारवान, साहसी, दूरदर्शी, साहित्य एवं वास्तुकला प्रेमी, विलक्षण प्रतिभावान व्यक्तित्व रहे हैं । जिन्होंने 'राजा' की पदवी धारण की थी। जिनका नाम भरतपुर राज्य के इतिहास में ही नहीं वरन् भारतर्ष के इतिहास में भी अपना विशेष महत्व रखता है जो कि भारतवर्ष के ऐतिहासिक पुरुषों में एक हैं । वीरत्व एवं दूरदर्शिता के इतिहास में राजा सूरजमल का आसन सदैव ऊँचा है। उन्होंने सत्य एवं शान्तिप्रिय, साहित्यप्रेमी पिता महाराजा बदनसिंह के नाम एवं गुणों को अपने सद्गुणों से कीर्तिमान किया। साथ ही ब्रज में एक स्वतंत्र शक्तिशाली हिन्दू राज्य के योग्यतापूर्वक संचालन का गौरव भी प्राप्त किया। राजा सूरजमल के सुसंयत आचरण और साहस से सवाई राजा जयसिंह भी प्रभावित हुए । उहोंने राजा सूरजमल को न केवल 'निशान' नगाड़ा और पचरंगा झण्डा ही नहीं बल्कि 'ब्रजराज' की उपाधि से भी विभूषित किया ।
मूलतः कृषिजीवी होने पर भी जाट राज्य की स्थापना का श्रेय राजा सूरजमल के पिता बदनसिंह का है जिन्होंने राज्य की अव्यवस्था को ठीक करने और शासन में आमेर के सवाई राजा जयसिंह, आगरा का सूबे का राज्यपाल नियुक्त थे तो ब्रजमण्डल भी सवाई जयसिंह के प्रभावित क्षेत्रों में था। मित्रवत् सम्बन्धों को सुदृढ करने की दृष्टि से मोहकम (चूड़ामन के पुत्र) के विरुद्ध बदनसिंह लड़े। जिसके फलस्वरूप सं. १७७९ में बदनसिंह जाटों के नये नेता बने और थून और सिनसिनी के पुराने गढों की ओर से ध्यान हटाकर डीग और कुम्हेर के क्षेत्र में अधिकार व सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण कराया । अतः सं. १७७९-८० में जाट राज्य की आधारशिला रखी गयी । सं. १७७९ से १८१२ तक की सुदीर्घ तैतीस वर्ष तक सुचारु शासन व साहित्यकारों से प्रभावित राज्य एवं साहित्य और कला के प्रेमी एवं प्रोत्साहन कर्ता रहे । अतः उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम समय तक ब्रज के सहार नामक स्थान में साहित्य चर्चा और काव्य रचना करते हुए ही बिताया एवं ज्येष्ठ पुत्र सूरजमल की सूझबूझ, बहादूरी व दूरदर्शिता से प्रभावित होकर राज्याधिकार सौंप दिया ।
सूरजमल अनुभवी विद्वानों की सत्संगत, उत्कृष्ट वैदिक विधिविधान एवं राजनीतियों के ज्ञाता थे। सूक्ष्म पर्यवेक्षक, निश्चल भावी तथा चतुर राजनायिक थे ये सभी ईश्वरीय वरदान ही था । उनकी स्मरण शक्ति व जिज्ञासा अलौकिक थी और राजनैतिक विचारधारा स्पष्ट थी। तत्कालीन लेखकों ने आपको "पंडित