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दीपक रंजन
SAMBODHI
अवधारणा प्रतिफलित होती है । एकान्तवादी चिन्तन से उपजी हिंसा, शोषण आदि की मनोवृत्ति ने समाज को एक भटकाव दिया है जिससे मानव अनैतिकता की ओर बढ़ता जा रहा है । अनेकान्तवाद इन विसंगतियों को अहिंसात्मक ढंग से ध्वस्त कर नैतिक चेतना को जागृत करता है । इस प्रकार अनेकान्तवाद दार्शनिक सिद्धान्त होने के साथ-साथ व्यावहारिक जगत् में व्याप्त वैचारिक संकुलता का निवारण अत्यन्त ही प्रभावी ढंग से करता है।
अनेकान्तिक चिन्तन की दिशा में आगे बढ़ने वाला समाज पूर्ण अहिंसक और आध्यात्मिक होगा। वह सभी के उत्कर्ष में सहायक होगा उसके साधन एवम् साध्य दोनों पवित्र होंगे । हृदय परिवर्तन के माध्यम से सर्वोदय का मार्ग प्रशस्त होगा । सापेक्षिक चिन्तन व्यवहार के माध्यम से निश्चितता की ओर बढ़ता जायेगा । स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर, बहिरंग से अंतरंग की ओर, व्यवहारिक से पारमार्थिक की ओर, ऐन्द्रिक ज्ञान से आत्मिक ज्ञान की ओर आगे बढ़ने में अनेकान्तवादी दृष्टि ही सक्षम होगी । वस्तुतः तत्त्वमीमांसीय अनेकान्तवाद, ज्ञानमीमांसीय स्याद्वाद एवम् आचारमीमांसीय अहिंसावाद एक ही तथ्य के विविध रूप है । कुछ तार्किक कठिनाईयों के बाद भी अनेकान्तवाद लोकापकारक एवम् व्यवहारिक मत है । यदि यह अनिवार्य रूप से मानव आचरण में आ जाये तो समस्त सामाजिक समस्याओं का समाधान सम्भव होगा ।
अंततः कहा जा सकता है कि अनेकान्तवाद का आलोक हमें निराश के इस अंधकार से बचाता है। वह हमें ऐसी विचारधारा की ओर ले जाता है जहाँ सभी प्रकार के विरोधों का उपशमन हो जाता है। यह समस्त दार्शनिक सिद्धान्तों तथा व्यवहारिक समस्याओं, उलझनों और भ्रमणाओं के निवारण का समाधान प्रस्तुत करता है। सभी समस्याएँ अनेकान्तवाद दृष्टि में उसी प्रकार विलीन हो जाती है जैसे विभिन्न दिशाओं से आने वाली सरिताएं सागर में एकाकार हो जाती है। अनेकान्तवाद वह न्यायाधीश है जो परस्पर विरोधी दावेदारों का फैसला बड़े ही सुन्दर ढंग से करता है जिससे वादी और प्रतिवादी दोनों को ही न्याय मिलता है । अतएव एकान्त के गन्दले पोखर से दूर रहकर अनेकान्त के शीतल स्वच्छ सरोवर में अवगाहन करना ही उचित है ।
संदर्भ :
१. अनन्तधर्मकवस्तु । अनन्तधर्मात्मकमेव तत्त्वम् । २. यदीदं स्वमर्थेभ्यो रोचते, तत्र के वयम् । ३. उत्पादव्ययध्रौव्यसंयुक्तं सत् । ४. गुणपर्यायवद् द्रव्यम् । ५. षड्दर्शनसमुच्चय ६. स्याद्वादमंजरी
अन्ययोग पृ० २२ प्रमाणवार्तिक २/२१० तत्त्वार्थ सूत्र ५/२९ तत्त्वार्थ सूत्र ५/३७ श्लोक, ५५ श्लोक, २६
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