________________
120
कानजीभाई पटेल
SAMBODHI
की चर्चा मिलती है। यहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद किये गये हैं-इन्द्रिय-प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष । इन्द्रिय-प्रत्यक्ष में नन्दी की भांति ही श्रोत्रेन्द्रिय-प्रत्यक्ष इत्यादि पाँच ज्ञानों का समावेश होता है और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष में अवधिज्ञान, मनःपर्याय और केवल-ज्ञान को समाविष्ट किया गया है। श्रुत को आगम में रखा है। नन्दी-सूत्र और अनुयोगद्वार में मुख्य अन्तर यह है कि नन्दी-सूत्र में श्रोत्रेन्द्रिय आदि को सिर्फ प्रत्यक्ष माना है और उसमें पाँच ज्ञान तथा दो प्रमाणों का लगभग समन्वय हो जाता है, जबकि अनुयोगद्वार-सूत्र में अनुमान और उपमान को कौन सा ज्ञान कहना, यह एक प्रश्न रहता है । निम्न तालिका से यह बात स्पष्ट हो जाती है
जीव के गुण
१ज्ञान
२ दर्शन
३ चारित्र
१ प्रत्यक्ष
२ अनुमान
३ उपमान
४ आगम
१ इन्द्रिय, प्रत्यक्ष २ नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष १ पूर्ववत २ शेषवत् ३ दृष्टसा- १ लौकिक २ लोकोत्तर १ श्रोत्रेन्द्रिय प्र० १ अवधिज्ञान प्र०
धर्म्यवत् | (वेद, रामायण) (आचाराङ्ग २ चक्षुरिन्द्रिय प्र० २ मनःपर्यायज्ञान प्र०
महाभारतादि आदि १२ ३ घ्राणेन्द्रिय प्र० ३ केवलज्ञान प्र०
अङ्ग) ४ जिह्वेन्द्रिय प्र० ५ स्पर्शेन्द्रिय प्र०
१ साधोपनीत २ वैधोपनीत
१ कार्येण २ कारणेन ३ गुणेन ४ अव्ययेन ५ आश्रयेण १ किञ्चिद्साधर्यो- १ किञ्चिद्वैधर्म्य
| | - पनीत । १ सामान्यदृष्ट २ विशेषदृष्ट २ प्रायःसाधोपनीत २ प्राय:वैधर्म्य
३सर्वसाधोपनीत ३ सर्ववैधर्म्य
। १ अतीतकालग्रहण २ प्रत्युत्पन्नकालग्रहण ३ अनागतकालग्रहण . ज्ञान-चर्चा की आगमिक और तार्किक पद्धतियाँ- ज्ञान-चर्चा की उपर्युक्त तीन भूमिकाओं में से पहली आगमिक और अन्य दो तार्किक पद्धतियाँ हैं । ज्ञान के मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय तथा केवलज्ञान-ऐसे पाँच भेद करने की पद्धति को दो कारणों से आगमिक कहा गया है, यथा
१. इसमें किसी भी जैनेतर दर्शन में प्रयुक्त नहीं हुए ऐसे पाँच ज्ञानों का निरूपण हुआ है। २. जैनश्रुत में कर्मप्रकृतियों का जो वर्गीकरण है, उसमें ज्ञानावरणीय कर्म के विभाग के रूप में