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कानजीभाई पटेल
SAMBODHI
क्षमाश्रमण के बाद प्रस्तुत विषय के श्वेताम्बर अधिकारी विद्वानों में चार आचार्य उल्लेखनीय हैंजिनेश्वर, वादिदेवसूरि, आचार्य हेमचन्द्र और उपाध्याय यशोविजय । भट्टारक अकलङ्क के पश्चात् दिगम्बर आचार्यों में माणिक्यनन्दि, विद्यानन्दि आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों ही सम्प्रदायों के इन आचार्यों ने अपनी-अपनी प्रमाणमीमांसा-विषयक कृतियों में बिना किसी परिवर्तन के लगभग एक ही प्रकार से अकलङ्ककृत शब्द-योजना पर ही ज्ञान का वर्गीकरण स्वीकार किया है। इन सभी ने प्रत्यक्ष के मुख्य और सांव्यावहारिक, यह दो भेद किये हैं । मुख्य में अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान को और सांव्यावहारिक में मतिज्ञान को लिया है। परोक्ष के स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम इन पाँच भेदों में प्रत्यक्ष को छोड़कर सभी प्रकार के ज्ञान के भेदोपभेदों को समाहित कर लिया है। इस प्रकार ज्ञान एवं प्रमाण का सम्पूर्ण समन्वय सिद्ध होता है ।
सन्दर्भ-ग्रन्थसूचि :
१. दलसुखभाई मालवणिया-आगमयुग का जैनदर्शन, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा २. सिद्धसेन-सन्मति प्रकरण-पं० सुखलालजी, ज्ञानोदय ट्रस्ट ३. सिद्धसेन-न्यायावतार, प्रस्तावना-पं० सुखलालजी ४. उमास्वाति-तत्त्वार्थसूत्र-पं० सुखलालजी, जैन साहित्य प्रकाशन समिति, अहमदाबाद ५. पं० अमृतलाल भोजक-अनुयोगद्वारसूत्र, महावीर जैन विद्यालय ६. अमोलक ऋषि-नन्दिसूत्र, सुखदेव सहाय ज्वाला प्रसाद जौहरी, हैदराबाद ७. कुन्दकुन्दाचार्य-प्रवचनसार, श्रीमद् राजचन्द्र ग्रन्थमाला ८. जिनभद्रक्षमाश्रमण-विशेषावश्यकभाष्य, ला० द० ग्रन्थमाला ९. यशोविजयजी-जैन तर्कभाषा-सिन्धी जैन ग्रन्थमाला १०. अकलङ्क-अकलङ्कग्रन्थत्रय-सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ११. अकलङ्क-तत्त्वार्थवार्तिक भाग-१-२, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १२. माणिक्यनन्दि-परीक्षामुख, पं० घनश्यामदास जैन, स्था० म०, काशी १३. विद्यानन्दि-प्रमाणपरीक्षा, सनातन जैन ग्रन्थमाला १४. कणाद-वैशिषिकदर्शन, चौखम्बा सं० सी० १५. देवसूरि-प्रमाणनयतत्त्वालोक, अर्हत्मत प्रभाकर कार्यालय, पूना १६. अक्षपाद-न्यायसूत्र, चोखम्बा सं० सी० १७. अमोलकऋषि-भगवतीसूत्र, सुखदेव सहाय ज्वाला प्रसाद जौहरी, हैदराबाद
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