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Vol. XXXII, 2009
पथ प्रदर्शक-महाराजा सूरजमल
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ही राज्य का असली वारिस समझते थे। अतएव पारिवारिक इष्ट मित्रता व न्याय प्रियता के वशीभूत होकर उन्होंने अपनी जाट सेना सहित ईश्वरीसिंह का साथ दिया और आमेर की फौज से ई. सन् १७४९में दोनों सेनाओं का बगरु मुकाम पर मुकाबला हुआ ।
बूंदी के कवि ने वंशभास्कर में लिखा है कि राजा सूरजमल ने अपने अकेले हाथों से विपक्षी दल के ५० आदमियों को मारा और १०८ को घायल किया। विजय राजा सूरजमल की 'घोर निराशा में आशा' । बूंदी के कवि ने विजय का श्रेय देते हुए लिखा है।
सह्यो भले ही जटिनी, जाय अरिष्ट अरिष्ट । जाठर रस रविपल्क हुव, आमेरन को इष्ट ॥ बहुरि जट्ठ मलहार सन, करन लग्यो हर वल्क ।
अंगद है हुल्कर, जाट मिहर मल्ल प्रतिमल्ल ॥ आकर्षक वीरत्व -
यूँ तो महाराजा सूरजमल ने कई युद्ध लडे और सभी महत्वपूर्ण रहें । युद्धों में बगरु के युद्ध में एक राजस्थानी कवि के शब्दों में वर्णन इस प्रकार है- "बगरु के महलों से किसी तरुणी ने गर्वोन्नत होकर पूछा कि यह व्यक्ति कौन है ? जिसकी पगड़ी पर मोर पंख का निशान है । जो घोड़े की लगाम दाँतों में दबाकर दोनों हाथों से तलवार चला रहा है।" नीचे खड़े किसी कवि ने उत्साह के साथ कहा, 'यह जाटनी के जठर (गर्भ) से उत्पन्न राजा सूरजमल हैं। यह सावाणी वंश का सिरताज है । इसी ने दिल्ली को बरबाद और तुर्की को बुरी तरह लूटा ।
गौरवपूर्ण वीरता की गाथाओं में कई बार अंग्रेजों को भरतपुर का दुर्ग हासिल करने में मुंह की खानी पड़ी उस विषय में भी कवि ने लिखा है -
वही भरतपुर दुर्ग है, अजय दीर्घ भयकारि ।
जहं जट्टन के छोकरे, दिये सुभट्ट पछारि ॥१० इसके अतिरिक्त, प्रेम कवि, जसराज, भागमल्ल, गंगाधर आदि कवियों ने भी भरपूर अपनी रचनाओं में ओजपूर्ण कथन कहे है ।११ संवेदनशीलता
वीरता के गुणों के अतिरिक्त संवेदनशीलता में भी दूरदर्शिता राजा सूरजमल में थी, जिसका उदाहरण भरतपुर के इतिहास में देखने को मिलता है । भरतपुर में हिन्दू और मुस्लिम एकता के समन्वय में एक बार राजा सूरजमल तथा मराठा सरदार भाऊ के साथ जून १७६० में दिल्ली गये । मार्ग में यमुना के किनारे कालीदह के स्थान पर १६ जुलाई को मथुरा में पड़ाव डाला गया । राजा सूरजमल मराठा छावनी में थे। विश्राम के पश्चात् उठकर भाऊ ने पश्चिम की ओर अब्दुल नवी खाँ की मस्जिद को देखकर कहा- "अफसोस आप हिन्दू होने का दावा करते हैं । अभी तक शहर के बीचोंबीच मस्जिद खड़ी है ?" राजा सूरजमल ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया "अभी तक हिन्दुस्तान का शाही भाग्य एक वैश्या की भाँति अस्थिर रहा है।