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Vol. XXXII, 2009 काव्यप्रकाश-सङ्केतकार आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि के स्वरचित उदाहरण 99
जिस तर्कमार्ग में सञ्चार करनेवाले प्रतिभाशाली जनों की भी प्रतिभारूपी किरीटपटली (मुकुटावली) शीघ्र ही सन्देहों द्वारा उतार ली जाती है, हटा दी जाती है, उस (सघन) विषम प्रमेयरूप वृक्षसमूह से व्याप्त तर्कपथ में जिसकी मति यथेष्ट गमन करती थी, निर्बाध चलती थी।
मदमदनतुषारक्षेपपूषा विभूषा जिनवदनसरोजावासिवागीश्वरायाः । द्युमुखमखिलतर्कग्रन्थपङ्कहाणां
तदनु समजनि श्रीसागरेन्दुर्मुनीन्द्रः ॥८॥ मद (गर्व) और मदन कामरूपी तुषार (ओस) को नष्ट करनेवाले सूर्यरूप, जिनमुखकमलवासिनी वाग्देवी के विभूषारूप, निखिल तर्कग्रन्थरूपी कमलों के लिए सूर्यरूप श्री सागरचन्द्र मक मुनीन्द्र उनके (नेमिचन्द्र जी)के पश्चात् हुए ।
माणिक्यचन्द्राचार्येण तदङिघ्रकमलालिना ।
काव्यप्रकाशसङ्केतः स्वान्योपकृतये कृतः ॥९॥ उन्हीं श्री सागरचन्द्रजी महाराज के चरणकमलों के चञ्चरीक (भ्रमर) बने माणिक्यचन्द्राचार्यने यह 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' अपने व अन्यों के उपकार के लिए रचा है ।
(रचनाकालः) रसवक्त्रग्रहाधीशवत्सरे मासि माधवे ।
काव्ये काव्यप्रकाशस्य सङ्केतोऽयं समर्थितः ॥१०॥ विक्रम संवत् १२६६ के माधव (वैशाख) मास में शुक्रवार को काव्यप्रकाश का यह सङ्केत नामक व्याख्यान सम्पन्न हुआ । यहाँ-रस-६, वक्त्र-६, ग्रहाधीश (आदित्य)= १२, इस प्रकार संख्या लेकर 'अङ्कानां वामतो गतिः' के अनुसार विक्रम संवत् १२६६ का समय आता है । विद्वानों द्वारा माणिक्यचन्द्र के सङ्केत की रचना का यही समय मान्य है ।
___ यहाँ कुछ विद्वान् वक्त्र शब्द से '१' संख्या का कुछ २ संख्या का तथा कुछ '४' संख्या का सङ्केत मानकर 'सङ्केत' का रचनाकाल क्रमशः १२१६, १२२४ व १२४६, विक्रम संवत् मानते हैं । परन्तु डा० भोगीलाल सांडेसरा ने वक्त्र शब्द से '६' संख्या का संकेत मानकर 'सङ्केत' का रचनाकाल १२६६ विक्रम संवत् निश्चित किया है । माणिक्यचन्द्र के महामात्य वस्तुपाल का सम्पर्की होने से यही मत युक्तिसंगत है।
___ इस मत की पुष्टि में दूसरा प्रमाण यह भी है कि आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि द्वारा रचित पार्श्वनाथचरितम् की प्रशस्ति में काव्यरचना-काल १२७६ विक्रम संवत् दिया है
रसर्षिरविसंख्यायां सभायां दीपपर्वणि । समर्थितमिदं वेलाकूले श्रीदेवकूपके ॥