Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावना
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श्राध्यात्म, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, वैद्यक, गणित प्रभृति
विषयों का श्रृंखलाबद्ध प्रतिपादन कर जैन साहित्य के भारडार को भरा है । दिगम्बर जैन साहित्य का अधिकांश श्रेष्ठ साहित्य कन्नड़ भाषा में है । पम्प, रन्न, पोन्न, जन्न, नागचन्द्र, कर्ण गर्य, श्राल, आचरण, बन्धुवर्मा, पार्श्वपंडित, नयसेन, मङ्गरस, भास्कर, पद्मनाभ, चन्द्रम, श्रीधर, साल्व, अभिनवचन्द्र आदि कवि और आचार्यों ने अनेक अमूल्य रचनाओं द्वारा जैन साहित्य की श्रीवृद्धि में योगदान दिया है। देशी भाषाओं में सबसे अधिक जैन साहित्य कन्नड़ भाषा में ही उपलब्ध है । यदि इस भाषा के अमूल्य ग्रन्थ र अनूदित कर हिन्दी भाषा में रखे जायें तो जैन साहित्य के अनेक गुप्त रहस्य साहित्य प्रेमियों के सम्मुख उपस्थित हो सकते हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ रत्नाकर शतक एक आध्यात्मिक रचना है । कवि रत्नाकरवर्णी ने कन्नड़ भाषा में तीन शतकों का निर्माण किया है - रत्नाकराधीश्वर शतक, अपराजित शतक और त्रैलोकेश्वर शतक | इन तीनों शतकों का नाम कवि के नाम पर रत्नाकर शतक रखा गया है ।
पहले रत्नाकराधीश्वर शतक में वैराग्य, नीति और श्रात्म तत्त्व का निरूपण है । दूसरे पराजित शतक में अध्यात्म और वेदान्त का विस्तार सहित प्रतिपादन किया गया है। तीसरे त्रै तोक्पेश्वर
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