Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक को बुराईओं से त्रस्त होकर; इस प्रकार अर्थ और काम पुरुषार्थ का एकांगी सेवन सुख के स्थान में दुःखदायक हो रहा है। ___ मनुष्य को वास्तविक शान्ति धर्म पुरुषार्थ के सेवन द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। अर्थ और काम पुरुषार्थ अांशिक सुख दे सकते हैं, पर वास्तविक सुख धर्म के धारण करने पर ही मिल सकता है। जैनाचार्यों ने वास्तविक धर्म आत्मधर्म को ही बताया है । इस आत्मा को संसार के समस्त पदार्थों से भिन्न अनुभव कर विवेक प्राप्त करना तथा आत्मा में ही विचरण करना धर्म है। इसी धर्म के द्वारा शान्ति और सुख मिल सकता है। जैन साहित्य में आध्यात्मिक विषयों को निरूपण करनेवाले अनेक ग्रन्थ हैं । समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, परमात्म प्रकाश, समाधितन्त्र, आत्मानुशासन, इष्टोपदेश श्रादि आप ग्रन्थों में श्रात्मतत्त्व का स्वरूप, संसार के पदार्थों से भिन्नता एवं उसकी प्राप्ति की साधन प्रक्रिया विस्तार पूर्वक बतायी है । कन्नड़ भाषा में भी आत्मतत्त्व के ऊपर कई ग्रन्थ हैं। ___ कविवर बन्धुबर्मा और रत्नाकर वर्णी जैसे प्रमुख प्राध्यात्मप्रेमियों ने कन्नड़ भाषा में अध्यात्म विषयक अनेक रचनाएँ लिखी हैं । यों तो प्राचीन कन्नड़ साहित्य को उच्च एवं प्रौढ़ बनाने का सारा श्रेय जैनाचार्यों को ही है । जैनाचार्यों ने कन्नड़ भाषा का उद्धार और प्रसार ही नहीं किया है, बाल्क पुराण, दर्शन, For Private And Personal Use Only

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