Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावन
संसार के सभी प्राणी अहर्निश सुख प्राप्ति के लिये प्रयत्न कर रहे हैं। सुख के प्रधान साधन धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों का सेवन कर मनुष्य सुखी हो सकता है। पर
आज भौतिकवाद के युग में धर्म पुरुषार्थ की अवहेलना कर मानव केवल अर्थ और काम पुरुषार्थ के अवाध सेवन द्वारा सुखी होने का स्वम देख रहा है। निर्धन घन के लिये छटाटाते हैं तो धनवान सोनेका महल बनाना चाहते हैं, वे रात-दिन धन की तृष्णा में डूबे हुए हैं । करोड़ों और अरबों भूख, दरिद्रता, रोग और उत्पीड़न-चक्र में नियमितरूप से पिसकर नष्ट हो रहे हैं। एक
ओर कुछ लोग अपनी वासनाओं को उद्दाम एवं असंयत बनाते जा रहे हैं तो दूसरी ओर फूल सी सुकुमार देवियाँ नारकीय जीवन व्यतीत कर रही हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी तृष्णा और अभिलाषा को उत्तरोत्तर बढ़ाता जा रहा है । आवश्यकताएँ उत्तरोत्तर बढ़ती जा रहीं हैं और आवश्यकताओं के अनुसार ही संचय-वृत्ति अनियन्त्रित होती जा रही है। इस प्रकार कोई प्रभाव जन्य दुःख से दुःखी है तो कोई तृष्णा के कारण कराह रहा है। एक संसार में सन्तान के अभाव से दुःखी होकर रोता है, तो दूसरा कुसन्तान
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