Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
असूया ( ईर्षा ) है । जो जिस गुणमें ईर्षाको धारण करता है, वह उस गुणके धारकको भी नही स्वीकार करता है। जैसे ऊंट मधुर ) al( मीठे ) रसमें ईर्षाको रखता है, इस कारण वह मधुर रसके धारक पोंडे सांठोंके समूहको भी नही ग्रहण करता है। इसी प्रकार ||
गुणोंमें ईके धारक वे कुवादी गुणोंको धारण करनेवाले आपको भी नहीं मानते है । इसप्रकार — परमतावलम्बी भगवान्की आज्ञा नहीं मानते है । यह कहकर, स्तुतिकर्ता आचार्य एकबार उनमें मध्यस्थता ( उदासीनपने ) को ही मानों धारण करके, फिर भी || उनको काव्यके उत्तरार्द्धसे हितका उपदेश देते है । 'तथापि आपकी आज्ञाको खीकार न करने पर भी 'विलोचनानि' नेत्रोंको 'सम्मील्य' बंद ( मींच ) करके “ सत्यं ' युक्तियों सहित 'नयवर्म' न्यायके मार्गको 'विचारयन्ताम् ' विचारो।
अत्र च विचारयन्तामित्यात्मनेपदेन फलवत्कर्तृविषयेणैवं ज्ञापयत्याचार्यो यदवितथनयपथविचारणया तेषामेव फलं वयं केवलमुपदेष्टारः । किं तत्फलमिति चेत्प्रेक्षावत्तेति ब्रूमः । सम्मील्य विलोचनानीति च वदतः । प्रायस्तत्त्वविचारणमेकाग्रताहेतुनयननिमीलनपूर्वकं लोके प्रसिद्धमित्यभिप्रायः । अथवा अयमुपदेशस्तेभ्योऽरोच
मान एवाचार्येण वितीर्यते । ततोऽस्वदमानोऽप्ययं कटुकौषधपानन्यायेनायतिसुखत्वाद्भवद्भिर्ने। निमील्य पेय IN एवेत्याकूतम् ।
विचारयन्ताम् ' यहांपर कर्ताके विषे फलको धारण करनेवाले आत्मनेपदका प्रयोग करनेसे आचार्य · सच्चे न्यायमार्गका विचार || Kol करनेसे उनको ही फल होगा, हमको नहीं । क्योंकि हम तो केवल उपदेश देनेवाले है' ऐसा अभिप्राय विदित करते है। सच्चे न्यायमार्गका विचार करनेसे उनको क्या फल होगा ? यह पूछो तो हम उत्तर देते है कि, 'वे प्रेक्षावान् (विचार करके काम हा करनेवाले ) कहलाये जायेंगें' यही उनको फल होगा । 'सम्मील्य विलोचनानि' ऐसा कहते हुए आचार्य यह अभिप्राय सूचित करते IN है कि, चित्तकी एकाग्रताका कारणभूत जो नेत्रोंको बंद करना है, उस पूर्वक तत्त्वोंका विचार किया जाता है। ऐसा प्रायः लोकमें प्रसिद्ध है।
इसलिये वे अन्यमती भी नेत्र बंद करके, सावधान होकर सच्चे न्यायमार्गका विचार करै । अथवा आचार्य यह उपदेश, उनको नहीं रुचता हुआ ही देते है। इसकारण नहीं रुचता हुआ भी यह उपदेश आगामी कालमें सुखरूप होनेके कारण कटुकौषधपानन्यायसे उनको नेत्र बंद करके पी जाना ही चाहिये यह आशय है । भावार्थ-जैसे वैद्य रोगीको रोग दूर करनेके लिये कड़वी औषध देते है।