Book Title: Prakrit Vidya 2000 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 10
________________ है। इसे मैं हृदय से स्वीकार करता हूँ, क्योंकि इसका वीतराग जिनेन्द्र भगवन्तों ने सेवन किया है और उपदेश भी दिया है। आगम-ग्रन्थों के आलोक में उपरिवर्णित विवरण से आत्मसाधना का मोक्षमार्ग में स्पष्ट महत्त्व सिद्ध है। इन आगमग्रंथों के प्रमाणों का किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से विरोध या उपेक्षा करने से सम्पूर्ण जैनशासन ही संकट में पड़ सकता है - ऐसा ज्ञानियों ने स्पष्टरूप से कहा है "नश्यत्येव ध्रुवं सर्वं श्रुताभावेऽत्र शासनम् । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन श्रुतसारं समुद्धरेत् ।। श्रुतात्तत्त्वपरामर्श: श्रुतात्स्वसमयवर्द्धनम् । तीर्थेशाभावत: सर्वं श्रुताधीनं हि शासनम् ।। –(आ० यश:कीर्ति, प्रबोधसार, 3/63-64) अर्थ:- श्रुत (आगम) का अभाव (उपेक्षा, विरोध) करने पर तो समस्त जैनशासन का विनाश हो जायेगा। अत: हरसंभव प्रयत्न करके श्रुत के सारतत्त्व (सार पदारथ आत्मा) का उद्धार करना चाहिये। श्रुत 'शास्त्र' से ही तत्त्वों का परामर्श होता है और इससे ही जैनशासन की अभिवृद्धि होती है। तीर्थंकर-भगवन्तों के अभाव में जैनशासन श्रुत (आगम या शास्त्र) के ही अधीन है। ___ इन आगम ग्रन्थों के अनुसार जिसकी बुद्धि काम नहीं करती है, इन्हें स्वीकारने को तत्पर नहीं हो पाती है, उसे आचार्यों ने 'दुर्बुद्धि' या 'दुष्टबुद्धि' कहा हैदुर्मेधव सुशास्त्रे वा तरणी न चलत्यत:।" -(आ० शुभचन्द्र, पाण्डवपुराण, 12/254) अर्थ:- दुष्टबुद्धि हितकारी शास्त्रों में चलाने पर (प्ररित करने पर) भी नहीं चलती ____ अत: आगमग्रन्थों में निहित आत्महितकारी तथ्यों को उपादेयबुद्धि से समझना और स्वीकार करना ही मुख्य प्रयोजन है। तथा शास्त्रों में आत्मा का सच्चा हित कहा गया “धर्म: शुद्धोपयोग: स्यात् ।” सभी धर्मानुरागीजन इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के आगम के आलोक में स्वीकारें तथा अपना जीवन मंगलमय बनायें। संसारमार्ग और मोक्षमार्ग मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्राणि संसारमार्गः। -(तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक) अर्थ:- मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र संसार के कारण हैं। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। -(तत्त्वार्थसूत्र 1/1) अर्थ:- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्ष के साधन हैं। ** 008 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000

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