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विषयवस्तु एवं प्रस्तुतीकरण की गरिमा के समक्ष वे बातें उपेक्षणीय हैं। मूल लेखक के रहते हुए प्रकाशक को कॉपीराइट' पूर्णत: ले लेना आश्चर्यकर लगा। प्रत्येक जिनमंदिर, पुस्तकालय, स्वाध्यायशाला, विद्वानों एवं श्रावकों के निजी पुस्तकालयों में भी यह कृति अनिवार्यरूप से होनी चाहिये। तथा प्रत्येक मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका को यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिये।
–सम्पादक **
पुस्तक का नाम : पाहुडदोहा मूल ग्रंथकर्ता : मुनि रामसिंह संपादन एवं मराठी अनुवाद : श्रीमती लीलावती जैन प्रकाशक
: स्वयंभू प्रकाशन, 8-ए, सन्मतिनगर, सोलापुर-4 (महा०) संस्करण
: प्रथम, नवम्बर 1999 ई० मूल्य
: 50 रुपये (110पृष्ठ, डिमाई साईज, पेपरबैक, सुन्दर मुद्रण) आज प्रान्तीय भाषाओं में जैन-ग्रंथों के जो संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं, संभवत: उनमें मराठी भाषा के विद्वान् व प्रकाशक सर्वत: अग्रणी हैं। ऐसे कई नूतन संस्करणों में एक नवीनतम संस्करण है लगभग एक सहस्र वर्ष प्राचीन कृति 'पाहुडदोहा' । अपभ्रंश भाषा में मूलत: निबद्ध इस कृति को सर्वप्रथम स्वनामधन्य मनीषीप्रवर डॉ० हीरालाल जैन जी ने करके कारंजा से प्रकाशित कराया था। फिर कुछ समय पूर्व भारतीय ज्ञानपीठ से डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री के संपादन में इसका एक और संस्करण प्रकाशित हुआ था। किसी क्षेत्रीय भाषा में मेरी जानकारी में इस ग्रंथ का यह प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ है। ___ इसमें मुख्यत: डॉ० हीरालाल जी जैन के संस्करण को आधार बनाया गया है तथा भारतीय ज्ञानपीठ के संस्करण की भी भावार्थ आदि में कहीं-कहीं मदद ली गयी है। इसमें मूल दोहों का मराठी पद्यानुवाद भी विदुषी संपादिका के द्वारा किया गया है। साथ ही मराठी अनुवाद में भी भाषा एवं भाव के अनुरूप शब्दावलि का चयन करना उनके वैदुष्य को स्फुट करता है। मुद्रण-शैली एवं मुद्रण-सामग्री भी अच्छी है। आशा है मराठी भाषा के अध्यात्मरसिक पाठकों को यह कृति पर्याप्त उपादेय रहेगी।
-सम्पादक **
पुस्तक का नाम : जैन आगम प्राणी कोश प्रधान संपादक : आचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाड़D-341306 (राजस्थान)
: प्रथम संस्करण '99, A-5 साईज़, आर्ट पेपर, सचित्र, पृष्ठ 120+12=132 : 250 रुपये (दो सौ पचास रुपये)
सस्करण
मूल्य
प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
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