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(नई दिल्ली) जीवाश्रम अस्पताल' द्वारा जीवों की साक्षात् रक्षा के लिए प्रदान किया गया। 4. 'अहिंसा इन्टरनेशनल प्रेमचन्द जैन पत्रकारिता पुरस्कार' 11000/- डॉ० अनुपम जैन (इन्दौर) 'अर्हत् वचन' के संपादक, जैन गणितज्ञ को समर्पित किया गया।
ये पुरस्कार 9 अप्रैल 2000, को कमानी सभागार, नई दिल्ली में भव्य समारोह में भेंट किये गये हैं। 'प्राकृतविद्या'-परिवार की ओर से सभी पुरस्कृत सज्जनों को हार्दिक बधाई
–सम्पादक **
यू०जी०सी० के पाठ्यक्रमों में प्राकृतभाषा' स्वतंत्र विषय के रूप में प्रारम्भ
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू०जी०सी०) के द्वारा वर्ष में दो बार आयोजित' होने वाली व्याख्यातापद-अर्हता-परीक्षा' (N.E.T.) तथा कनिष्ठ शोध-अध्येतावृत्ति पात्रता परीक्षा' (J.R.F.) के पाठ्यक्रमों में 'प्राकृतभाषा' को स्वतन्त्र विषय के रूप में मान्यता प्राप्त थी; किंतु गतवर्ष यह मान्यता अप्रत्याशित रूप से समाप्त कर दी गयी थी। तब से प्राकृतभाषा के अध्येताओं एवं भाषाविदों में यू०जी०सी० के इस कदम के प्रति व्यापक खेद व्याप्त था।
यह परम हर्ष का विषय है कि विख्यात शिक्षाविद् डॉ० मण्डन मिश्र जी के सद्प्रयत्नों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष माननीय श्री हरिगौतम जी ने 'प्राकृतभाषा' को इन परीक्षाओं में पुन: स्वतन्त्र-विषय के रूप में मान्यता दे दी है। उनके इस कदम का प्राकृतभाषा-प्रेमियों एवं शिक्षाविदों ने व्यापक स्वागत किया है तथा इस महान् कार्य को कराने के लिए डॉ० मण्डन मिश्र जी के प्रति एवं 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की है।
-डॉ० सुदीप जैन **
डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया का समाधिमरण __ जैन-विद्वानों की परम्परा में चार न्यायाचार्य विद्वान् हुये - पूज्य क्षु० गणेश प्रसाद जी वर्णी, पं० माणिक चन्द जी कौन्देय, डॉ० महेन्द्र कुमार जी जैन एवं डॉ० दरबारी लाल जी कोठिया। इन चारों विद्वानों ने जैनसमाज की एवं साहित्य की जो अनुपम सेवा की है, उसे जैनसमाज के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिये। ___ डॉ० दरबारीलाल कोठिया इस परम्परा के अंतिम विद्वान् थे। उन्होंने जैन तत्त्वज्ञान को व्यावहारिक जीवन में उतारते हुये 'पंडितमरण' का वरण किया।
ऐसे अद्वितीय मनीषी के प्रति सुगतिगमन एवं बोधिलाभ की मंगलकामना के साथ 'प्राकृतविद्या-परिवार' की ओर से हार्दिक श्रद्धासुमन समर्पित हैं। –सम्पादक **
'पत्राचार प्राकृत पाठ्यक्रम दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा "पत्राचार प्राकृत सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम” प्रारम्भ किया जा रहा है। सत्र 1 जुलाई, 2000 से
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प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000