Book Title: Prakrit Vidya 2000 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 111
________________ इस अंक के लेखक /लेखिकायें 1. आचार्यश्री विद्यानन्द मुनिराज —- भारत की यशस्वी श्रमण परम्परा के उत्कृष्ट उत्तराधिकारी एवं अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी संत परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज वर्तमान मुनिसंघों में वरिष्ठतम हैं । इस अंक में प्रकाशित 'अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग' एवं 'गोरक्षा से अहिंसक संस्कृति की रक्षा' शीर्षक आलेख आपके द्वारा विरचित हैं । 2. रामधारी सिंह दिनकर - भारत के यशस्वी राष्ट्रकवि दिनकर जी जननेता भी थे और सिद्धहस्त लेखक भी। ऐसी बहुआयामी प्रतिभा के धनी महामनीषी अपने साहित्य के रूप में आज भी जनजीवन में विद्यमान हैं। इस अंक में प्रकाशित 'वैशाली' नामक कविता आपके द्वारा विरचित हैं । 3. पं० नाथूलाल जी शास्त्री — आप संपूर्ण भारतवर्ष में जैनविद्या के, विशेषतः प्रतिष्ठाविधान एवं संस्कार के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित वयोवृद्ध विद्वान् हैं । आपने देश भर के अनेकों महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों का दिग्दर्शन किया है तथा सामाजिक शिक्षण के कार्य में आपका अन्यतम योगदान रहा है। आपने विविध विषयों पर अनेकों प्रामाणिक महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं हैं । इस अंक में प्रकाशित 'एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न का समाधान' तथा 'भट्टारक परम्परा एवं एक नम्र निवेदन' शीर्षक आलेख आपके द्वारा विरचित हैं । स्थायी पता – 42, शीश महल, सर हुकुमचंद मार्ग, इंदौर - 452002 ( म०प्र०) 4. डॉ० राजाराम जैन —– आप मगध विश्वविद्यालय में प्राकृत, अपभ्रंश के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त होकर श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान के निदेशक हैं। अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों, पाठ्यपुस्तकों एवं शोध आलेखों के यशस्वी लेखक। इस अंक के अन्तर्गत प्रकाशित 'जैन समाज का महनीय गौरव ग्रंथ कातंत्र - व्याकरण' एवं 'अपभ्रंश के कडवक छन्द का स्वरूप विकास' नामक शोध आलेखों के लेखक आप हैं 1 स्थायी पता — महाजन टोली नं० 2, आरा-802301 ( बिहार ) 5. डॉ० विद्यावती जैन - आप मगध विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं तथा जैन - साहित्य एवं प्राकृतभाषा की अच्छी विदुषी हैं। आप प्रो० ( डॉ० ) राजाराम जैन की सहधर्मिणी हैं। इस अंक में प्रकाशित 'हंसदीप : जैन रहस्यवाद की एक उत्प्रेरक कविता' शीर्षक लेख आपका है 1 स्थायी पता - महाजन टोली नं० 2, आरा-802301 (बिहार ) 6. डॉ० प्रेमचंद रांवका—- आप हिन्दी - साहित्य के सुविज्ञ विद्वान् हैं । इस अंक में प्रकाशित आलेख 'मनीषी साधक : पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ' आपके द्वारा रचित है। स्थायी पता—1910, खेजड़ों का रास्ता, जयपुर-302003 ( राज० ) 7. डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया - आप जैनविद्या के क्षेत्र में सुपरिचित हस्ताक्षर हैं, तथा प्राकृतविद्या उ [+ जनवरी - मार्च 2000 ☐☐ 109

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