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___ आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी तेरापंथी श्वेताम्बर जैन-परम्परा के युगप्रधान आचार्य तो हैं ही, एक उत्कृष्ट कोटि के गवेषी विद्वान् एवं सिद्धहस्त लेखक भी हैं। उनके निर्देशन में जैन विश्व भारती, लाडनूं एवं अन्य श्वेताम्बरीय तेरापंथी जैन संस्थायें बौद्धिक कार्यों में भी समुचितरूप से संलग्न हैं। ___ जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज०) द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ जी के प्रधान संपादकत्व में प्रकाशित यह कोश-ग्रन्थ विशिष्ट महत्त्व रखता है। इसमें प्रमुख श्वेताम्बर आगम-ग्रन्थों में वर्णित/उल्लिखित प्राणियों (पशु-पक्षियों) का परिचय दिया गया है। प्रत्येक प्राणी के बारे में आगत मूल प्राकृत नामों के उल्लेख के साथ-साथ वर्तमान प्राणीशास्त्रियों की सुबोधगम्यता के लिए अंग्रेजी नामकरणों का भी उपयोग किया गया हैं; राष्ट्रभाषा में प्रदत्त परिचय तो सर्वजनोपयोगी है ही।
ग्रन्थों का कितनी तरह से अध्ययन किया जा सकता है और कितने आगमों से उनमें निहित तथ्यों का वर्गीकरण करके उपयोगी सामग्री को स्वतन्त्र स्वरूप प्रदान किया जा सकता है – इसका यह एक आदर्श प्रतिमान है।
दिगम्बर जैन आगम-साहित्य पर ऐसे अनेकों आयामों से कार्य करके इस तरह के अनेकों इससे भी विशाल कोश-ग्रन्थों का निर्माण किया जा सकता है। आवश्यकता है समाज को ऐसी दिशा एवं प्रेरणा देने की तथा संकल्पशक्ति के धनी, सूक्ष्मप्रज्ञावान् गंभीर विद्वानों को ऐसे कार्यों में भरपूर प्रोत्साहन के साथ नियोजित करने की। मेलों, आन्दोलनों, जलूसों, रैलियों एवं व्यक्तिपूजा की खातिर बने रहे तथाकथित नये तीर्थों के प्रति आँख बंद कर चलनेवाला दिगम्बर जैन समाज उसे चलाने वाला नेतृत्व, विशेषत: साधुवर्ग क्या इस बारे में गंभीरता से ठोस निर्णय ले पायेगा? —यह एक यक्षप्रश्न है।
ऐसे प्रेरक शोधकार्य एवं उसके नयनाभिराम प्रकाशन के लिए संपादक एवं प्रकाशक —दोनों अभिनंदनीय हैं।
–सम्पादक **
प्रकाशक
पुस्तक का नाम : गोम्मटेश्वर बाहुबली एवं श्रवणबेलगोल : इतिहास के परिप्रेक्ष्य में लेखक : सतीश कुमार जैन
: लाडा देवी ग्रंथमाला, 3-ई०, श्यामकुंज, 12-सी, लार्ड सिन्हा रोड,
कलकत्ता-71 संस्करण : प्रथम संस्करण 1992 मूल्य : 100 रुपये, पृष्ठ 151, डिमाई साईज, पक्की जिल्द
यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है, जिसमें इतिहास, संस्कृति एवं तथ्यों की पूरी प्रामाणिक जानकारीपूर्वक एक श्रमसाध्य प्रातिभ प्रयत्न स्पष्टत: परिलक्षित होता है। जैन-परम्परा के पौराणिक महापुरुषों तीर्थंकर ऋषभदेव एवं चक्रवर्ती भरत के बारे में
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प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000