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इस प्रसंग पर श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर में राजस्थान दिगम्बर जैनसभा के मंत्री श्री महेन्द्रकुमार जी पाटनी की अध्यक्षता में लगभग 200 भाई-बहिनों की उपस्थिति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन दिनांक 8.2.2000 रात्रि 8 बजे किया गया। ___ आचार्यश्री के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये ब्र० यशपाल जी ने कहा कि – “कारंजा, बाहुबलि, एलोरा, नवागढ़ (महाराष्ट्र), खुरई (म०प्र०) आदि अनेक स्थानों पर संचालित गुरुकुलों को समय-समय पर प्रेरणा एवं मार्गदर्शन देकर महाराजश्री ने समाज पर अनन्त उपकार किये हैं। अखिल भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा कमेटी के लिए एक करोड़ रुपयों का फण्ड बनाने का कार्य भी महाराजश्री की प्रेरणा एवं परिश्रम से ही संभव हो पाया है।"
- श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय, जयपुर के प्राचार्य पण्डित श्री रतनचंदजी भारिल्ल ने कहा कि-"मुनिश्री का स्वर्गवास समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। मुनिश्री की प्रेरणा से ही सामाजिक कुरीतियाँ, जैसे—बलिप्रथा तथा कुदेवादि गृहीत मिथ्यात्व को मिटाने का महान् कार्य सम्पन्न हुआ।"
ब्र० कल्पना बहिन ने “आचार्यश्री के सरलवृत्ति एवं संयमी जीवन को अपने में उतारना ही उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि होगी” — ऐसा कहकर विनयांजलि अर्पित की।
अध्यक्षीय भाषण में श्री महेन्द्रकुमार जी पाटनी ने उनके साथ बिताये कुछ विशेष प्रसंगों का स्मरण करते हुए उनके कार्य को महान् बताकर मुनिश्री को श्रद्धांजलि दी। __ श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के छात्र प्रशान्तकुमार काले शास्त्री, विजय कालेगोरे शास्त्री, संतोष दहातोंडे शास्त्री, विवेक सातपुते शास्त्री, नितिन कोठेकर शास्त्री, अमोल संघई शास्त्री, सुनील बेलोकर आदि ने भी गुरुकुल में आचार्यश्री के सान्निध्य में ज्ञानप्राप्ति तथा उनके जीवन पर वक्तव्य देकर श्रद्धासुमन अर्पित किये। सभा ' का संचालन पण्डित किशोर कुमार जी बण्ड शास्त्री ने किया। ___अन्त में सभी ने मौनधारण कर आचार्यश्री को चिर शाश्वत सुखों की कामना करते हुये सभा समाप्त हुई।
-श्रुतेश सातपुते शास्त्री, बापूनगर, जयपुर ** धर्माधिकारी श्री वीरेंद्र हेगड़े जी को 'पद्मभूषण'-सम्मान दक्षिण कर्नाटक प्रान्त के श्रीक्षेत्र 'धर्मस्थल' के परम सम्मान्य धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी को इस वर्ष भारत सरकार द्वारा 'पद्म-भूषण' के उच्चतर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया है। ____एक सात्त्विक, उच्च गरिमायुक्त दिगम्बर जैन कुल में जन्मे श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी ‘सादा जीवन-उच्च विचार' की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं। आपकी मातुश्री रत्नम्मा हेगड़े जी के सौम्य, सुदर्शन व्यक्तित्व की पूरा प्रभाव आपश्री के जीवन एवं व्यक्तित्व में परिलक्षित है। उच्चशिक्षा प्राप्त आपश्री मातृभाषा कन्नड़ के अतिरिक्त अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखते हैं तथा आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। 24 अक्तूबर 1968 को मात्र बीस वर्ष की आयु में आपका दक्षिण कर्नाटक के सर्वाधिक पूज्यतम क्षेत्र 'धर्मस्थल' के 'धर्माधिकारी' के पद पर विधि-विधानपूर्वक अभिषेक हुआ। इस पद की गरिमा
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प्राकृतोवद्या-जनवरी-मार्च '2000