Book Title: Prakrit Vidya 2000 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 101
________________ समाचार दर्शन परमपूज्य आचार्यश्री आर्यनंदि जी मुनिराज का सुगति - गमन पूज्यश्री आर्यनंदि जी मुनिराज जैन समाज के गौरव को बढ़ाने वाले 20वीं शताब्दी के महान् ज्ञानवृद्ध, तपोवृद्ध संत-शिरोमणि परमपूज्य आचार्यश्री आर्यनंदि मुनिराज ने दिनांक 7 फरवरी 2000 को 93 वर्ष की आयु में अत्यं शांतभावपूर्वक शास्त्रोक्त-विधि से नश्वर शरीर का त्याग कर सद्गति की प्राप्ति की । आपश्री की मुनि-दीक्षा दिनांक 13 नवम्बर '59 ई० को कुंथलगिर क्षेत्र पर पूज्य आचार्य श्री समन्तभद्र जी मुनिराज के करकमलों से हुई थी । ब्रह्मचारी अवस्था से मुनि दीक्षा लेने वाले वे बीसवीं शताब्दी के प्रथम महान् साधक थे । दीक्षोपरांत दो वर्षों में आपने . साठ से अधिक आगमग्रंथों का सूक्ष्म अभ्यास किया । पूज्य आचार्यश्री आर्यनंदि जी मुनिराज हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू एवं संस्कृति आ अनेक भाषाओं के विशेषज्ञ थे तथा आपश्री की पवित्र लेखनी से प्रात:स्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार आदि कई ग्रंथरत्नों का अनुवाद होकर प्रकाशन हुआ । आपकी पवित्र लेखनी यावज्जीवन साहित्यसृजन में निरत रही । आपश्री के करकलों से 168 धार्मिक पाठशालाओं की स्थापना हुई, अनेकों गुरुकुल बने एवं कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी हुआ। अपने गाँव-गाँव में घर-घर में वीतराग जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया । विभिन्न स्थानों पर शिविर लगाकर भी आपने समाज को ज्ञानदान दिया । 1 इक्यानवे (91) वर्ष की आयु में भी आपश्री 1700 कि०मी० चलकर सम्मेदशिखर जी गये, जहाँ आपश्री ने इस क्षेत्र के लिए दिगम्बर जैन समाज को महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन एवं नेतृत्व प्रदान किया। ऐसे परमतपस्वी, ज्ञानाराधक आचार्यश्री आर्यनंदि जी मुनिराज के शास्त्रोक्तविधि से सुगतिगमन के निमित्त प्राकृतविद्या - परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धासुमन सविनय समर्पित हैं । - सम्पादक ** श्री टोडरमल स्मारक भवन में मुनिश्री आचार्य आर्यनंदि जी को श्रद्धांजलि दिनांक 7.2.2000 को सायं 7.15 बजे तपोनिधि तीर्थरक्षा शिरोमणि आचार्यश्री 108 आर्यनंदि जी महाराज का समाधिमरण पूर्वक स्वर्गवास हुआ । प्राकृतविद्या जनवरी-मार्च 2000 0099

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