________________
मासद्वये तु सम्प्राप्ते मासमेद: प्रजायते, मज्जास्थीनि त्रिभिर्मासै: केशांगुल्यश्चतुर्थकैः ।। कर्णाक्षिनासिकाचास्यरन्ध्र मासे तु पञ्चमे, सर्वांगसन्धिसम्पूर्णमष्टभिः सम्प्रजायते।। मासे च नवमे प्राप्ते गर्भस्थ: स्मरति स्वयम्, जुगुप्सा जायते गर्भे गर्भवासं परित्यजेत् ।। रक्ताधिके भवेन्नारी नरः शुक्राधिके भवेत्, नपुंसकस्समे द्रव्ये त्रिविध: पिण्डसम्भवः ।। मज्जास्थिशुक्रधातोश्च रक्त-रोमफलं तथा, पञ्चकोषमिदं पिण्डं पण्डितै: समुदाहृतम् ।।"
-(संगीत समयसार, अध्याय 2, पद्य 8-16, पृ० 25-26) __ अर्थ:-शरीर को 'पिण्ड' कहा जाता है, अत: पिण्ड का निरूपण किया जाता है। आदिम चैतन्य बीज शुक्र और रक्तजल (वीर्य और रज:) से सिंचित विशिष्ट काल में एकीभूत होता है और समय आने पर जन्म लेता है। एक रात्रि में कलल', पाँच रात्रियों में 'बुद्बुद', दस रात्रियों में शोणित', चौदह रात्रियों में 'मांसपेशी', बीस दिन में 'घनमांस' —इस रीति से गर्भस्थ शिशु क्रमश: बढ़ता रहता है। पच्चीस दिन पूर्ण होने पर वह गर्भ समस्त अंकुरों से युक्त हो जाता है और एक मास पूर्ण होने पर उस पर त्वचा आदि आने लगती है। दो मास में माँस' और 'मेद' उत्पन्न हो जाता है, तीन मास में 'मज्जा' और 'हड्डी', तथा चौथे मास में 'बाल' और 'अँगुलियाँ' निर्मित हो जाती हैं। पाँचवे मास में कान-नाक आदि के रन्ध्र' (छिद्र) बन जाते हैं तथा आठ मास में समस्त संधियों से युक्त पूर्ण शरीर बन जाता है। नौवाँ महीना लगने पर गर्भस्थ जीव स्मरण करने लगता है तथा उसे गर्भ के वातावरण से जुगुप्सा होती है और वह गर्भ-परित्याग की चेष्टा करने लगता है। यदि गर्भकाल में रक्ताधिक्य हो, तो 'नारी' तथा वीर्य की अधिकता होने पर 'पुरुष' शिशु होता है। दोनों की समानता होने पर नपुंसक शिशु होता है। विद्वानों ने इस पिण्ड को मज्जा, अस्थि, शुक्र, धातु, रक्त और रोम का फल ‘पञ्चकोष युक्त' भलीप्रकार से कहा है। ___इस बारे में आधुनिक विज्ञान के द्वारा भी ऐसे तथ्यों को स्वीकृति दी जा रही है, तथा जैनाचार्यों का नामोल्लेख भले ही वे नहीं कर रहे हैं, फिर भी उन बातों को मान्यता दे रहे हैं। सद्य-प्रकाशित एक ऐसे आलेख का अविकलरूप यहाँ दिया जा रहा है"भ्रूण को भी क्रोध आता है
महाभारत की कथाओं में वीर अभिमन्यु के गर्भ में रहते हुये भी चक्रव्यूह रचना समझने की बात कही गई है। चक्रव्यूह में प्रवेश का तरीका तो अभिमन्यु सीख गया, मगर व्यूह भेदकर बाहर जाने की जानकारी उसे नहीं हो पाई। असल में जब पिता यह भेद समझा रहे थे कि मां को नींद आ गई और उन्होंने बात रोक दी। अभी तक इस घटना को अकसर मजाक के तौर पर लिया जाता रहा है, मगर अब चिकित्सकों और मनो-चिकित्सकों ने इसकी सत्यता सिद्ध की है।
तथ्य की पुष्टि के लिये ऐसे शोध और परीक्षण कर डाले हैं, जो बताते हैं कि नवजात
00 70
प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000