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आपने जैन - न्याय का अध्ययन भी कराया ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अन्य क्षेत्रों के विकास की भाँति पूज्य पंडित साहब ने जैन समाज के भी विकास की आवश्यकता अनुभव की । उन्होंने समाज हित की दृष्टि से जैन समाज को निम्न चार आयाम प्रदान किये, जो आज निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर हैं — एक, राजस्थान के दिगम्बर जैन मन्दिरों के शास्त्र - भण्डारों में संगृहीत वर्षों से असूर्यंपश्य ग्रन्थ-राशि के सार-संभाल, सूचीकरण, प्रकाशन एवं उनके अज्ञात एवं महत्त्वपूर्ण तथ्यों के अन्वेषण हेतु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्रीमहावीरजी की प्रबन्ध समिति को अनुसंधान-विभाग प्रारम्भ करने एवं निर्धन छात्रों तथा असहाय विधवाओं को आर्थिक सहायता देने की प्रेरणा दी। जो आज क्रमश: 'जैनविद्या - संस्थान' और 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' तथा ‘छात्रवृत्ति - योजना' के नाम से कल्पवृक्ष का रूप ले चुके हैं।
दूसरा, पाक्षिक पत्रिका ‘वीरवाणी' का प्रकाशन, जिसके द्वारा नवीन शोधपूर्ण आलेखों, सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों एवं अन्य स्तम्भों से समाज को जागृत करने हेतु पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ को प्रेरणा दी। इस पत्रिका ने पचास वर्ष के काल-खण्ड में अनेक शोधपूर्ण-विशेषांक भी प्रकाशित किये जो सन्दर्भ ग्रन्थ बने हैं
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तीसरा, सामाजिक संगठन की दृष्टि से 'राजस्थान जैन सभा' के मंच से समाज को संगठित कर दशलक्षण पर्व, क्षमावाणी पर्व, महावीर जयन्ती का वृहद् आयोजन एवं 'महावीर जयन्ती स्मारिका' का प्रकाशन आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित किया ।
चतुर्थ, 'राजस्थान जैन साहित्य परिषद्' का गठन कर विद्वानों को एक मंच प्रदान किया और उन्हें जैन साहित्य के अध्ययन, अन्वेषण एवं लेखन की ओर प्रवृत्त किया, जो आज भी प्रति वर्ष श्रुतपंचमी के आयोजन के रूप में गतिमान है । वे स्वयं इस परिषद के प्रथम अध्यक्ष एवं बाद में संरक्षक रहे। उनके समय में एक शोधपूर्ण पत्रिका भी प्रकाशि हुई ।
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पंडित जी साहब लोकेषणा से कोसों दूर रहते थे । आचार्यश्री विद्यानन्द जी ने उन्हें 'कपड़े से ढँके मुनि की संज्ञा दी । ' प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया ने लिखा— “पं० टोडरमलजी के बाद निर्भीक, प्रभावी विद्वान् जयपुर में पं० चैनसुखदास जी हुये, जिन्होंने समाज को प्रबुद्ध किया । "
• जैनदर्शन के ऐसे विश्रुत विद्वान् पं० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक अवदान के प्रति कृतज्ञता - ज्ञापन - हेतु जयपुर जैनसमाज की प्रतिनिधि सभा ने उनके सौवें जन्म-वर्ष पर विविध कार्यक्रमों के साथ जन्म-शताब्दी समारोह मनाने का निर्णय लिया है । भारत सरकार ने इस वर्ष को 'संस्कृत वर्ष ' के रूप में घोषित किया है। निश्चित ही इस वर्ष में पूज्य पंडित जी साहब द्वारा की गई संस्कृत-सेवा का भी मूल्यांकन होगा ।
प्राकृतविद्या जनवरी-मार्च 2000
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