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सिद्धार्थ का लाडला (भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव के शुभ प्रसंग पर निर्मित)
-जयचन्द जैन, मेरठ (उ०प्र०)
कब गया?
सर्दी का मौसम था, कहाँ गया?
हवा तीक्ष्ण थी, तेज थी, कँपा रही थी, किधर गया?
घनघोर वन था, वह सिद्धार्थ का लाडला।
हिंसक पशुओं का विचरण था,
सरिता का तट था, वीर था,
सरिता में थी लहरें, गम्भीर था,
तट पर खड़े हुए वृक्ष के नीचे बैठा हुआ वह क्या उसे किसी वस्तु की थी कमी?
वीर था। कमी नहीं थी बन्धुओ !
ध्यान लगाये राज का कोष भी था भरा हुआ,
अपने ही कल्याण के लिए नहीं; उनके राज्य का भी बड़ा विस्तार था,
बल्कि विश्व के कल्याण के लिए किन्तु उसके तो मन में ही पूर्ण वैराग्य था, आज प्रभात से न जाने कहाँ गया?
बैठा हुआ नग्न था,
कर रहा मुक्ति का यत्न था किधर गया?
वह सिद्धार्थ का लाडला। वह सिद्धार्थ का लाडला। .
इतने में डमक-डमक डमरू बजा, इधर ढूँढा, उधर ढूँढा,
बिजली कौंधी, मिला? ना मिला।
बादल गरजे, मिला
जोरों से तूफान चला; जहाँ रात्रि थी, चन्द्र था, चाँदनी थी, ऐसी गरजन, तारों से आच्छादित गगन था, ऐसी तड़कन, चल रही सुगम पवन थी,
डर लगता है।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000