Book Title: Prakrit Vidya 2000 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 65
________________ हत्थ-णक्ख ते जदि संथारं गिण्हदि, तो भरणि-णक्खत्ते दिवसे मरदि।। 13।। चित्ता-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो मियसिर-णक्खत्ते अद्धरत्ते मरदि।। 14।। सादि-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो रेवदि-णक्खत्ते प भादे मरदि।। 15।। विसाह-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो असिलेसा-णक्खत्ते मरदि।। 16 ।। असिलेसा-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो पुव्वभद्द-णक्खत्ते दिवसे मरदि।। 17 ।। मूल-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो जेंट्ट-णक्खत्ते पमादवेलाए मरदि।। 18।। पुव्वासाढ-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो मियसिर-णक्खत्ते पदोसवेलाए मरदि।। 19 ।। उत्तरासाढ-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो तद्दिवसे चेव; अहवा भद्दपदणक्खत्ते अवरण्हे मरदि।। 2011 सवण-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो उत्तरभद्द-णक्खत्ते तद्दिवसे कालं करेदि।। 21।। धणिट्ठा-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो तद्दिवसे कालं करेदि; जदि तद्दिवसे कालं ण करेदि, तो पण तद्दिवसे चेव आगदे मरदि।। 22 ।। सदभिस-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, जेट्ठा-णक्खते अत्थवणवेलाए मरदि।। 23 ।। पुव्वभद्दपद-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो पुण्णवसु-णक्खत्ते रत्तिं मरदि।। 24।। उत्तरभद्दपदे णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो दिवसे वहमाणे वा पुणरादि वा मरदि।। 25।। रेवति-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो मघ-णक्खत्ते मरदि।। 26।। मूल-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो जेट्ट-णक्खत्ते मरदि।। 27।। __ नक्षत्र-फलों का वर्णन 'अश्विनी-नक्षत्र' के समय क्षपक ने संस्तर ग्रहण किया, तो 'स्वाति-नक्षत्र' के समय रात में उसको समाधिमरण प्राप्त होगा।। 1 ।। ____ 'भरणि-नक्षत्र' के समय क्षपक ने समाधिमरण के लिये संस्तर का आश्रय किया, तो रेवती-नक्षत्र' के समय दिन के प्रारम्भ में उसको समाधिमरण प्राप्त होगा।। 2 ।। __ 'कृतिका नक्षत्र' के समय यदि मुनि बिछौने पर शयन करेंगे, तो उत्तरफाल्गुनी-नक्षत्र' पर मध्याह्न काल में उसका मरण होगा।। 3 ।। रोहिणी-नक्षत्र' पर संस्तर ग्रहण करनेवाले मुनियों का 'श्रवण-नक्षत्र' में आधी रात के समय मरण होगा।। 4।। 'मृगसिर-नक्षत्र' पर सल्लेखना का आश्रय लेने से पूर्वफाल्गुनी-नक्षत्र' पर मुनि का देहान्त होगा।। 5।। 'आर्द्रा-नक्षत्र' में यदि संस्तर किया, तो दूसरे दिन मरण होगा। यदि न हुआ, तो आगे के नक्षत्र में उसकी मृत्यु होगी। अथवा पुनः वही 'आर्द्रा-नक्षत्र' आने पर मृत्यु होगी।। 6।। 'पुनर्वसु-नक्षत्र' पर बिछौना ग्रहण किया, तो 'अश्विनी-नक्षत्र' पर अपराह्नकाल प्राकृतविद्या जनवरी-मार्च '2000 00 63

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