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रवती-नक्षत्र' पर संस्तर-धारक क्षपक का 'मघा-नक्षत्र' पर मरण होगा।। 26।। 'मूल-नक्षत्र' में संस्तर लेवें, तो ज्येष्ठा-नक्षत्र' में प्रात: मरण होगा।। 27।।
इनका विचार करके श्रमण शांतभाव से उचित नक्षत्र, काल, बेला आदि का निर्णय, शरीर की स्थिति आदि का निर्णय करके अनाकुलभाव से मृत्यु-महोत्सव को सफल बना सकते हैं।
सुभाषचन्द्र बोस और हिटलर 29 मई, 1942 को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस एक खास हवाई जहाज से बर्लिन से रास्तेनबर्ग के लिए रवाना हुए। वहाँ निकट ही एक फौजी छावनी में उन दिनों जर्मन नेता हिटलर का निवास था। विदेशमन्त्री हेरवॉन रिब्रेनटॉप ने हवाई अड्डे पर नेताजी का स्वागत किया। हिटलर के खास दूत प्रोफेसर मार्टिन बोरमन ने नेताजी से कहा—'मिस्टर बोस, तिलक के 'गीतारहस्य के लेटेस्ट एडिसन (नवीनतम आवृत्ति) की कोई प्रति है आपके पास?' नेताजी आश्चर्य से स्तंभित होकर देखने लगे। प्रोफेसर बोरमन मुस्कराते हुए बोले—“मिस्टर बोस ! मैं अभी भी म्यूनिख युनिवर्सिटी में पढ़ाता हूँ। कालिदास, भवभूति आदि की रचनायें मेरे घर में हैं। लोकमान्य तिलक का मुझे विशेष आकर्षण है।” नेताजी ने कहा-"मेरी छाती गर्व से फूली जा रही है कि हमारी संस्कृति को जाननेवाले प्रकाण्ड पंडित महान नेता हिटलर की अंतरंग मंडली में भी हैं।"
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बात छोटी, बड़े विचार बापू के सेवाग्राम आश्रम' में आभा गाँधी का विवाह था। सरोजनी नायडू ने बापू से पूछा- “बापू, आभा कितनी सुन्दर है; किन्तु आप उसे विवाह में भी आभूषण तो पहनने नहीं देंगे, फिर यदि आप आज्ञा दें, तो उसे फूलों से सजा दूं।” बापू ने कहा—“उसे फूलों से अवश्य सजा सकती हो, किन्तु गिरे हुये फूलों से; क्योंकि फूल तोड़ने में तुम्हें आनन्द आयेगा, किन्तु उस वनस्पति को कितना कष्ट होगा? इसका भी ध्यान रखना तो जरूरी है।" नायडू विवश होकर चुप रह गईं।
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विशिष्ट कौन? "गो-बाल ब्राह्मण-स्त्री पुण्यभागी यदीष्यते। सर्वप्राणिगणत्रायी नितरां न तदा कथम् ।।"
-(आचार्य अमितगति, श्रावकाचार, 11/3) अर्थ:- यदि गौ, ब्राह्मण, बालक और स्त्री की रक्षा करनेवाला पुण्य भागी है, तो जिसने सम्पूर्ण प्राणीसमूह की रक्षा का व्रत लिया है, वह उससे विशिष्ट क्यों नहीं? वह अवश्य विशिष्ट है।
प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
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