Book Title: Prakrit Pingal Sutrani
Author(s): Lakshminath Bhatta, Sivdatta Pt
Publisher: Tukaram Javaji

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Page 178
________________ १६२ काव्यमाला। अथ चण्डी नयुगलसयुगलगैरिति चण्डी ॥ १७०॥ यन्नगणद्वयसगणयुगलगुरुभिर्युक्तं भवति तच्चण्डीनामकं वृत्तमिति ॥ यथा जयति दितिजरिपुताण्डवलीला__ कुपितकवलकरकालियमौलौ । चरणकमलयुगचापलचण्डी पदनखरुचिजनिभोगमणिश्रीः॥ उद्दवणिका यथा-॥॥ ॥s, us, 5, १३४४-५२ ॥ चण्डी निवृत्ता ॥ अथ मजुभाषिणी ___सजसा जगौ च यदि मञ्जभाषिणी ॥१७१ ॥ यत्र सगणजगणसगणाः, अथ च जगौ जगणगुरू भवतः, तन्मजुभाषिणीछन्दः इति ॥ इयमेव सुनन्दिनीति शंभौ ॥ यथा अमृतोमिशीतलकरेण लालयं__ स्तनुकान्तिचोरितविलोचनो हरेः । नियतं कलानिधिरसीति वल्लवी ___ मुदमच्युते व्यधित मञ्जुभाषिणी ॥ उद्ववणिका यथा-us, Isi, us, Is), 5, १३४४-५२ ॥ मजुभाषिणी निवृत्ता ॥ अथ चन्द्रिका छन्दः ननततगुरुभिश्चन्द्रिकाश्चर्तुभिः ॥ १७२ ॥ नगणद्वयतगणयुगलगुरुभिश्चन्द्रिका सप्तट्विरचितविरतिर्भवतीति ॥ यथा शरदमृतरुचश्चन्द्रिकाक्षालिते दिनकरतनयातीरदेशे हरिः। विहरति रभसाबल्लवीभिः समं त्रिदिवयुवतिभिः कोऽपि देवो यथा ॥ यथा वा 'इह दुरधिगमैः किंचिदेवागमैः सततमसुतरं वर्णयन्त्यन्तरम् ।

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