Book Title: Prakrit Pingal Sutrani
Author(s): Lakshminath Bhatta, Sivdatta Pt
Publisher: Tukaram Javaji
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२ परिच्छेदः] प्राकृतपिङ्गलसूत्रम् ।
२२७ इदमेवोदाहरणम् । नानाकविबन्दिकृतं वा प्रोक्तलक्षणं संवार्य (?) समुदाहर्तव्यमिति ॥ उ. दृवणिका यथा-susums॥१६+sususss/१५-३१४४=१२४॥ सवैआ निवृत्ता॥
अथ प्राकृतसूत्रेण [वर्णवृत्त]प्रोक्तानां वृत्तानां नामान्यनुक्रामति
सिरि काम महू मही सौरु ताली पिआ संसी रेमणा जाण पंञ्चाल मैइन्दा मन्दर कमल तिण्णा धौरी गगाणी 'संमोहा हॉरी' हंसा । जमका सेसा तिल्ली विज्जोहा .उरंसा मेन्थाणा संखणारी मिल्ला
मॉलई दैमणअ सैमाणिआ सुवासा कैरहंचा ता सीसा विज्ञमालि पैमाणि मल्लिका 'तुंगा कॉमला महालच्छी सौरङ्गिका पाँइत्ता कमला बिम्बो तोमरु पमाला "संजुत्ता चैम्पअमाला आजाण ___ सौरवती (समा अमिअगइ वैन्धू सुमुही णिका दोधेअ सौलिणी
मणा सेणिक मौलतीमाला एका इन्दउ तह विन्दा उवजाये विज्जाहर भुअङ्गा लैच्छीहर तोलआ सॉरङ्ग मोर्त्तिकैदामा मोदका
तरलणअणि तह सुन्दरि माँया तीरअ कन्दो पङ्कावलि वसन्त- . तिल चैंक भमरावलि छन्दा सारङ्गिक चौमर तह णिसिँपाल मणहंसा मालिणि संरभा गराउ णीला तह चञ्चला वैम्भारूअउ जाणिआ ॥
पुहवी माँलाहरा मञ्जीरा जाणहु कीलाचन्दा चञ्चरि सर्लासट्टअ जाणहु चन्दमाला धैवलङ्गा सम्भू गीआ तह गण्डका सद्धरआ
गरेन्द हंसी सुन्दरिआ 'दुम्मीला तह मुणहु किरीटभ छंदा विभ तिभङ्गी सीलूराँ 'संवैआ । कइपिङ्गल भणिअ पञ्चग्गल सउ सव्वाजाणहु घरकइ मुण हव्व ॥ २९२॥
एतानि पञ्चाधिकशतरूपाणि सर्वाणि स्थानकं कृत्वा ज्ञातव्यानीति । अन्यान्यपि प्रस्तारगत्या स्वबुद्ध्या सुधीभिरुह्यानि छन्दांसीत्युपरम्यते ॥ अथ प्रन्थान्तराद्दण्डकलक्षणानि सोदाहरणान्युच्यन्तेयदिह नयुगलं ततः सप्तरेफास्तदा चण्डवृष्टिप्रपातो भवेद्दण्डकः॥ यदि नगणयुगलानन्तरं सप्त रेफाः सप्त रगणा यदि भवन्ति । तदा चण्डवृष्टिप्रपातो नाम दण्डको भवतीति। अत एव 'दण्डको नौरा-' इति पिङ्गलवृत्तौ भट्टहलायुधेनाभ्यधायि(?)। * 'तह छअ अग्गल सअ छन्दा इअ जम्पइ कइ राजा वरपिङ्गलणामपसिद्धफणिन्दा ।

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