Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रज्ञा संचयन जीवनयात्रा के कुछ अंश मेरी कृतियाँ प्रज्ञाचक्षु का दृष्टिप्रदान', 'दक्षिणापथ की साधनायात्रा', 'साधनायात्रा का संधानपथ', 'अमरेली से अमरिका तक', 'अंतर्यात्रा विमलसरिता सह', 'voyage Within with Vimalajee', 'My Mystic Master Y. Y. Shri Sahajanandaghanji', 'The Great Warrior of Ahimsa', 'गुरुदेव के संग'-- आदि आदि में शब्दबद्ध हुए हैं। यहाँ इतना निर्देश करना समीचीन है कि १९५६ इ. में आचार्य विनोबाजी संग पूर्वभारत एवं दक्षिणभारत की पदयात्राओं के पश्चात् पूज्य पंडितजी के अहमदाबाद स्थित ‘सरितकुंज' के आश्रम-उपवनवत् पावन सान्निध्य में आकर वसने का एवं उनकी यत्किंचित् सेवा सह विद्यासाधना करने का मुझे परम सौभाग्य संप्राप्त हुआ था। नगरमध्य का वह स्थान मानों पुराण पुरुष प्राज्ञ-ऋषि का एक लहलहाता, पंछियों से किलकिलाता प्रशांत ‘विद्याश्रम' ही था। वहाँ तरुतले 'चिकु-निकुंज' की मेरी घास-फूस चटाई की छोटी-सी विद्या कुटिर भी बनी थी, जहाँ पंडितजी की सेवा के दुर्लभ अवसरों के बाद मेरा एकांत अध्ययन होता था। कभी कभी पंडितजी स्वयं वहाँ, अपने आगंतुक मिलनार्थी मनीषियों को साथ लेकर अचानक पधार जाते, विराजित होते और हमारा प्रणवमंत्र गान-श्रवण भी करते - सितार के साथ ! अद्भुत आनंदानुभूति होती थी तब । मेरे आत्मखोज-आत्मकेन्द्र आधारित साहित्य-संगीत-दर्शन का वह संनिष्ठ विद्याकाल, साधनाकाल था (महाविद्यालयीन अध्ययन एवं अध्यापन का)। बीच में शांतिनिकेतन एवं हैदराबाद विश्वविद्यालयों में अनुस्नातक अध्ययन एवं ऋषि-संगीतगुरु पूज्य 'नादानंद' बापूरावजी की निश्रामें संगीत अध्ययन के काल को छोड़कर १९७० इ. तक के १४ वर्षों का मेरे विद्याजीवन-निर्माण का वह विशाल कालखंड, परम उपकारक पूज्य पंडितजी ने ऐसा तो प्रभावित और अपनी परा-अपरा विद्याओं से अंकित किया है कि वह सुवर्ण काल भुलाया नहीं जा सकता ! पर अब तो उसकी साक्षात्वत् स्मृति ही शेष रह पाई है - ‘ते हि नो दिवसा गताः ' !! फिर इस कालखंड के अंत में, अपनी ९० वर्ष की देहायु के पड़ाव पर पहुँचकर, शायद मेरे गौतमस्वामीवत् उनके प्रति के प्रशस्त राग-बंधन को तुड़वाने और शायद मुझे अग्निपरीक्षाओं द्वारा अधिक ऊर्ध्वयात्रा करवाने, उन्होंने ही मुझे

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 182