Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ प्रज्ञा संचयन आए। उन्होंने गाँधीजी के जीवन को नज़दीक से जाना पहचाना । अहिंसा एवं सत्य के महान उपासक से वे प्रभावित हुए। यथाशक्ति सहयोग भी प्रदान किया। गाँधीजी के जीवन के सत्य को पंडित सुखलालजी ने अपनी प्रज्ञा से प्रकाशित किया है। गाँधीजी के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु एक दार्शनिक के द्वारा लिखा गया विशिष्ट विवेचन भी अवश्यमेव पठनीय है। पंडितजीने आजीवन जैनदर्शन का अध्ययन, चिंतन, मनन एवं आचरण किया । समय समय पर जैनधर्म में हुए परिवर्तन एवं विशेषताओं का सम्यक् बोध उनके लेखों से प्राप्त होता है। वर्तमान में जहाँ कहीं विकार या रूढ़ि के कारण हानी हो रही है उन बातों को निर्भीक होकर पंडितजी ने लिखा है। जैन धर्म एवं दर्शन जानने एवं समझने के लिए ये लेख महत्वपूर्ण हैं। इन लेखों में से कुछ चुने हुए लेखों का संग्रह यहाँ किया गया है। ये सभी लेख पठनीय एवं मननीय हैं। श्रीयुत प्रतापभाई के साथ मेरा परिचय तीन दशक पूर्व उनकी अति मेधावी पत्रकार सुपुत्री स्व. कु. पारुल एवं उनकी सहधर्मिणी श्रीमती सुमित्रजी के साथ हुआ था। प्रत्यक्ष परिचय के पूर्व मैंने प्रतापभाई के गीत एवं संगीत को सुना था और तभी से मैं प्रतापभाई के प्रति आकर्षित हुआ था। प्रत्यक्ष परिचय के पश्चात् हमारे संबंध गहन होते गए। समय समय पर इसमें स्नेह एवं सौहार्द का सींचन होता रह। कुछ महिने पूर्व जब उन्होंने मुझे इन लेखों के प्रकाशन की बात कही तब मेरा मन अत्यंत प्रसन्न हो गया। यहाँ तो केवल श्रीमद् राजचंद्र विषयक, गाँधीजी विषयक एवं कुछ चुने हुए जैनदर्शन के लेखों का संचयमात्र है। किन्तु श्रीमद्जी,गाँधीजी एवं जैनदर्शन को . समझने के लिए ये लेख कुंजी स्वरूप हैं। इन महत्वपूर्ण लेखों का हिन्दी रूपांतरण करके प्रतापभाईने न केवल जैनदर्शन की अपितु साहित्य एवं समाज की महती सेवा की है। इस अवसर पर मैं यह कामना करता हूँ कि भविष्य में प्रज्ञाचक्षु पंडितश्री सुखलालजी संघवी के अन्य गुजराती लेखों का भी हिन्दी भाषान्तर करके वे हमें लाभान्वित करेंगे। प्रतापभाई तो अत्यंत विनम्र विद्वान हैं । इस कार्य को गुरुतर्पण के रूप में मानते हैं, किन्तु मैं इसको साधना सुमन मानता हूँ और पुनः पुनः धन्यवाद अर्पित करता हूँ। - जितेन्द्र शाह

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 182