Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 11
________________ प्रज्ञासंचयन : प्रज्ञाचक्षु डा. पंडित श्री सुखलालजी प्राक्कथन (पंडितजी की संक्षिप्त जीवन झलक एवं निजी संस्मरण सह) प्रत्यक्ष सद्गुरु सम नहीं, परोक्ष प्रभु उपकार । ऐसो लक्ष भए बिना, सुझे न आत्मविचार ।। ____ (सप्तभाषी आत्मसिद्धि - ११, श्रीमद् राजचन्द्रजी - सहजानंदघनजी) प्रातःवंदनीय परमोपकारक महाप्राज्ञ पूज्य पंडितजी का स्थान एवं निष्कारण वात्सल्यपूर्ण पितृवत् उपकार मेरे जीवन में सर्वाधिक रहा है। माता-पिता द्वारा संस्कारित आ. श्री. भुवनरत्नसूरिजी एवं मुनिश्री नानचंद्रजी-संतबालजी जैसे जैन संतों से आरम्भ हुई एवं आचार्य विनोबाजी-बालकोबाजी, जे. कृष्णमूर्ति तथा गुरुदयाल मल्लिकजी, चिन्नम्मा माताजी, विदुषी विमलाताई आदि वर्तमान दृष्टाओं से पुष्पित-पुष्टित मेरी आत्मखोज-पूर्ण अल्प-सी विद्यायात्रा-साधनायात्रा मूलतः युगदृष्टा युगप्रधान श्रीमद् राजचन्द्रजी एवं जैन जीवनधारा से परिप्लावित और प्रभावित रही है। पूज्य पंडितजी ने उसे ऐसा सुस्पष्ट, सकारात्मक मोड़ एवं गंतव्य प्रदान कर प्रवाहित किया और अपने अंतर्दृष्टि-प्रदान से १४ वर्षों की अपनी सुदीर्घ, सुष्ठु निश्रा में परिशुद्ध किया कि, एक भूमिकावत् आगे जाकर श्रीमद् राजचन्द्रजी के अनन्य शरणापन्न योगीन्द्र युगप्रधान श्री सहजानन्दघनजी (भद्रमुनिजी) एवं आत्मज्ञा माताजी धनदेवीजी के हंपी-कर्नाटक-रत्नकूट स्थित तीर्थसलिला तुंगभद्रा तट की विशाल आत्मसाधना की पुनित पावन महाधारा में घुलमिल जाने में, सर्वथा समर्पित हो जाने में, वह सक्षम और सार्थक सिद्ध हुई। यह सारा श्रेय अनंत उपकारक पूज्य पंडितजी की परम पवित्र प्रज्ञात्मा को ! इस सुदीर्घ

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