Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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संस्कृत चरित काव्य :
संस्कृत में जैन चरित काव्य लिखने का आरम्भ सबसे पहले आचार्य रविषेण ने किया। इन्होंने "पद्मचरित " की रचना 667 ई. में पूर्ण की। यह 18000 अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण है और संस्कृत जैन कथा साहित्य सम्बन्धी प्रारम्भिक जैन रचना है। इसमें पद्म (राम) की कथा निबद्ध है। रामकथा सम्बन्धी यह सबसे प्रारम्भिक संस्कृत जैन रचना है। इसकी कथावस्तु 123 पर्वों में विभक्त है। सर्वप्रथम पं. दौलतराम जी ने इसका हिन्दी गद्यानुवाद किया था। इस अनुवाद को पढ़कर या सुनकर अनेक अजैनों ने जैनधर्म अपना लिया और जैनधर्म की बड़ी प्रभावना की ।
सातवीं आठवीं शताब्दी के सचल में दिने गरि " की रचना की। इसमें श्रीकृष्ण के समकालीन राजकुमार वरांग का जीवन संस्कृत पद्मों में सरल भाषा में निबद्ध किया गया है। इसमें 31 सर्ग हैं। बीच-बीच में धर्म तत्व का वर्णन है।
898 ई. में उत्तरपुराण के कर्त्ता आचार्य गुणभद्र ने नवसगत्मिक " जिनदत्तचरित" की रचना की। जिनदत्त अंगदेश के वसन्तपुर नगर के निवासी सेठ जीवदेव के पुत्र थे। इनका चरित्र इसमें निबद्ध है।
950-999 ई. में हुए आचार्य वीरनन्दि ने "चन्द्रप्रभचरित" की रचना की। इसमें जैनधर्म के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभका चरित निबद्ध है। इसकी काव्यशैली प्रौढ़ है और काव्यरसिकों तथा विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
लाटवागड़ संघ के आचार्य महासेन ने 947 ई. में " प्रद्युम्नचरित" की रचना की। इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित निबद्ध है। काव्य 14 सर्गों में पूर्ण हुआ है।
महाकवि असग ने 'वर्द्धमानचरित' और 'शान्तिनाथ चरित' नामक महाकाव्यों की रचना की। इन्होंने 988 ई. में 'बर्द्धमानचरित' की रचना पूर्ण की। इसका कथानक भगवान् महावीर सम्बन्धी है। 'शान्तिनाथचरित' में भगवान् शान्तिनाथ का जीवन चरित्र वर्णित है।
1025 ई. में वादिराज सूरि ने 'पार्श्वनाथचरित' की रचना की । वादिराज सूरि प्रसिद्ध तार्किक और कवि थे। न्याय एवं दर्शन सम्बन्धी उनकी प्रौढ़ता का दिग्दर्शन कराने में 'न्यायविनिश्चय विवरण' एवं 'प्रमाण निर्णय' पूरी तरह समर्थ हैं। वादिराज का 'पार्श्वनाथचरित' भगवान् पार्श्वनाथ के समग्र जीवन पर विस्तृत
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